virtual life vs real life
एक दृश्य-पति दोपहर में हाफ-डे यानी आधे दिन की छुट्टी लेकर घर पर अपनी कार से आया। भीषड़ गर्मी पड़ रही है कार में एसी चल रहा है वह घर के मेन गेट पर गाड़ी खड़ी करता है हार्न बजाता है। तभी मोबाईल की घंटी बजती है वह कॉल में व्यस्त हो जाता है गाड़ी चालू है एसी भी। उधर घर में पत्नी खिड़की से देख लेती है जो कि सास बहू के सीरियल देखने में व्यस्त है। सोचती है कॉल अटेंट कर लेने दो जब तक सीरियल का मजा लिया जाये। पति का कॉल खत्म होता है वह फिर हार्न बजाता है पत्नी फिर एक नजर देखती है लेकिन सीरियल का मोह उस पर हावी है सोचती है जल्दी ब्रेक आ जाये तो जाऊं। और यहाँ पति फिर दूसरे कॉल पर व्यस्त हो जाता है। इस तरह लगभग २० मिनिट तक यंू ही सोये हुये, बेहोश लोगों का एक दूसरे के प्रति व्यवहार चलता रहता है पति सोचता है पत्नि किसी काम में व्यस्त होगी और पत्नि सोचती है अब घर आ तो गये हैं अंदर में आ जायेंगे और जायेंगे भी तो कहाँ। फिर पति थकहार कर गाड़ी से उतर कर गेट खोलता है और गाड़ी अंदर पार्क करता है फिर पत्नि उसे ऐसा करते देखती रहती है खिड़की के पर्दे से और तुरंत टीवी बंद कर गेट खोलती है और चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुये पूछती है आ गये। पति यदि इस समय यह कहे कि हार्न सुनाई नही दे रहा था क्या। तब क्या होगा सोचिये। इसलिये पति जो कि अनुभवी है तुरंत अंदर जाता है और पूछता है बच्चे कहाँ है पत्नि बताती है कि खेलने गये है अपने दोस्तो के साथ।
इस द़श्य में हमने एक बात नोटिस की, कि पति उस बड़ी चिंता या समस्या को छोड़ कर एक छोटी समस्या या चिंता के बारे में पूछता है कि बच्चे दिखाई नही दे रहे कहाँ गये। ये ऐसे ही है जैसे कोई हमसे कहे कि एक बड़ी लकीर या लाइन आपके सामने है उसे बिना छुये या बिना मिटाये छोटी करके दिखाओ तो जैसी कि बीरबल ने किया था उस पति ने भी उस बड़ी समस्या को छोड़ कर छोटी पर ध्यान दिया उसने उस बड़ी लकीर के पास ही एक छोटी लकीर खींच दी लेकिन स्वयं को भ्रमित किया कि वह बच्चों वाली समस्या बड़ी समस्या है उस समस्या के आगे। और पत्नी को लगा कि इन्होंने मेरी गलती को देखा ही नही पत्नी भी खुश और पति भी स्वयं को भ्रमित कर चुपचाप। इस तरह उसने अपना स्वर्ग कायम रखा।
हम दिन भर फेसबुक पर और दोस्तों के बीच देश की समस्याओं पर बहस करते हैं देश में ऐसा होना चाहिये, बैसा होना चाहिये लेकिन जब अपने घर की समस्याओं की बारी आती है तो चुपचाप सोचते है कि वह समस्या सुलझाई नही जा सकती यदि सुलझाने की कोशिश की तो हम अपना हम नर्क स्वयं निर्मित कर लेंगे। जरूरी नही कि ये हाल केवल पुरूषो का है यह हाल उन कामकाजी महिलाओं का भी है जो सोचती हैं जैसा चल रहा है चलने दो। बच्चें बड़े हो रहे हैं अब सुनते नही क्या करें।
हमारी सोच ऐसी होती जा रही है कि हम केवल बड़ी समस्या को ही सुलझाने के लिये अपना दिमाग और कलम चलाएंगे छोटी छोटी समस्याओं में कौन उलझे और जैसा कि हम सबको पता है हम सब यही कर रहे हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कोई नेताओं की फोटोस को मिक्स कर अपनी भड़ास निकाल रहा है, कोई कविताऐं लिख कर अपनी वर्चुअल दुनिया में स्वर्ग का अनुभव कर रहा है रियल लाईफ के नर्क को भूलकर, कोई लगा हुआ है दूसरों को सिखाने अपना ध्यान छोटी छोटी समस्याओं से हटाकर। हम लोग दिन भर इतनी बड़ी बड़ी समस्याऐं अपने दिमाग में भर कर अपने घर पहुंचते हैं जैसे कि आज क्या हुआ देश में, कल क्या होगा, आज मेरी पोस्ट को कितने दोस्तों ने लाईक नही किया, उस फलां दोस्त ने अपनी फोटो डाली कल मै भी अपनी फोटो खींच कर फेसबुक पर डालूंगा। पेट्रोल के रेट क्यो बढ़ रहे हैं, देश में शेयर मार्केट आज क्यो गिरा, क्यो बढ़ा।
और इन समस्याओं को हम बढ़ा कर आंक रहें हैं ये हैं ही नही ये समय के साथ होने वाली घटनायें है जो कि आदी काल तक चलती रहेंगी। और जो मुख्य समस्या है जो हमारे घर पर हमारा इंतजार कर रही है उसे हम अनदेखा किये जाते हैं प्रतिदिन। अगर हमने इनकी ओर ध्यान दिया तो खुद भी परेशां होंगे और घर वाले अलग । लेकिन एक बात याद रखें यदि हमने दीमक को छोटी समस्या समझ कर स्वयं को भ्रमित किया तो एक दिन यह दीमक हमारे जीवन को खोखला कर देगा।
इस कहानी के माध्यम से हम समझते हैं-
एक बार मुल्ला नसरूद्दीन से किसी ने पूछा कि तुम्हारी अपनी पत्नि से लड़ाई क्यों नही होती वह तुम्हारी पूरी सेलरी मेकअप में और कपड़ो पर खर्च कर देती है। तब नसरूद्दीन ने कहा कि मेरी पत्नि से शादी से पहले ही मुझसे यह तय कर लिया था कि बड़ी समस्याऐं मै सुलझाउंगा और छोटी वह। इसलिये घर में में क्या आना है क्या नही आना है उसकी फ्रिक वह करती है मै तो केवल बड़ी समस्याओं की ओर ध्यान देता हंू कि पेट्रोल के रेट कम कैसे हों, शक्कर के भाव क्यो बढ़ रहे हैं, भ्रष्टाचार से जंग कैसे जीतें आदि। वह अपना काम करके खुश है और मै अपना काम पूरी ईमानदारी से करके खुश।
लेबल: अध्यात्म