Identify your internal power with meditation
एक संत ने अपने अनुयायियों को एक सौ डालर का नोट दिखाकर कहा कि कौन इसे लेना चाहेगा, सभी ने अपने हाथ उठा दिये। तब उन संत ने उस नोट में थोड़ी धूल लगाई और फिर वही प्रश्न किया। फिर अधिकतर लोगों ने अपना हाथ उठा दिया। इस बार संत ने नोट को मोड़कर, गुड़ीमाड़ी कर फिर वही प्रश्न किया और वही उत्तर पाया सभी उस नोट को पाने के लिये अपने हाथ ऊपर उठाये हुये थे।
जैसे इस नोट की कीमत कभी कम नही होती, चाहे नोट किसी भी परिस्थिति में हो, क्योकि गवर्नर ने ये लिखा है नोट पर कि मै धारक को सौ रूपये अदा करने का वचन देता हँू वैसे ही परमपिता परमेश्वर ने हम सभी को समान शक्ति दी है। हमें दुर्दशा की धूल,कठिन परिस्थितियाँ और दुख-मुसीबते कितना ही दीन हीन कर दें लेकिन हमें अपनी जो अनंत शक्ति, जो हमारे अंदर प्रवाहित हो रही है उसे नही भूलना है। जो हमारे पापकर्म हमारी किस्मत बन कर सामने आ रहे हैं उन्हें तप और ध्यान और आध्यात्मिक ज्ञान से गलाना है ताकि बचे हुए पापकर्म किस्मत न बन पायें। शास्त्रों में कहा गया है कि परमात्मा भी हमारी किस्मत नही बदल सकते लेकिन वो हमारी टेढ़ी-मेढ़ी राह को आसान बना देते हैं,दुख और मुसीबतों को ढोने के लिये हमारे कंधे मजबूत कर देते हैं। चालाक लोगों के बीच अपने सीधे साधे भक्तों का भी गुजारा करा देते हैं। लोगो के सामने अपना रोना, रोना बंद कर एक संकल्प की शक्ति को जागृत करें कि मै साधनों और धन के अभावों के होते हुये भी अपने संकल्प को पूरा करूंगा क्योकि मेरे परमपिता की शक्ति मेरे साथ हैं जो कि अनंत है। मुझे भी उसी परमपिता ने बनाया है जिसने धरती, सूरज, चाँद और तारे बनाएँ हैं जिसने उन महान लोगो को बनाया जिन्होंने आज तक लोगो के मन मस्तिष्क में पेठ बना रखी है। जैसे पानी भाप में बदल कर अपनी शक्ति बढ़ा लेता है क्योकि उसमें सूक्ष्म शक्ति आ जाती है वैसे ही हमें ध्यान और नाम जप के साथ साथ पूरी तन्मयता से अपने परमपिता की भक्ति में कूटस्थ होना है। आज से ही दीन-हीन होकर हाथ फैलाने की आदत को छोड़ अपने सामर्थ्य के अनुसार सेवा कार्य कर पुण्य अर्जित करना है जरूरी नही कि हम पैसा खर्च करें सेवा कार्य के लिये, दिखावा करें। अगर आप राह से जा रहे हैं और और एक पत्थर राह में पड़ा है जिसकी ठोकर से किसी को हानि हो सकती है उसे राह से दूर कर दें। और छोटे मोटे सेवा कार्य करते हुए। बिना दिखावे के अपने परमपिता की भक्ति में लगे रहें। जिस बात से आपको भय लगता है जिससे आपकी धड़कने तेज हो जाती हैं बिना किसी कारण के, जिसे अनजाना भय कहते हैं उसे बार बार करें। उस भय से भागने से अच्छा से उस भय के पीछे भागें, जब भी आपको किसी तरह का अनजाना भय लगे, आप अपने मस्तिष्क को शांत कर, लम्बी गहरी साँसे लें , केवल अपने ईष्ट को याद करें, जैसे सूरजमुखी का फूल किसी भी परिस्थिति में अपना मुख सूर्य के ओर ही किये होता है चाहे वह धरती पर कहीं पर भी हो। ऐसे लोगों से दूर रहने की आदत विकसित करें जो आपका मनोबल गिराने के लिये पुरजोर कोशिश करते हों लेकिन बड़ी सावधानी से क्योकि निंदक ही है जो हमें आईना दिखाता है कि हम कैसे है फिर वह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने आईने में दिखाई दे रहे प्रतिबिम्ब को पसंद करें या हीनभावना से ग्रस्त हो जाये और निराशा के समुद्र में समा जायें। किसी की प्रगति देख कर ये न सोचे कि मै यह नही कर सकता, मेरी तो किस्मत ही खराब है, स्वयं को कोसना छोड़ अपनी वर्तमान परिस्थितियों से किसी भी हाल में उठने की पुरजोर कोशिश करों। किसी वृक्ष को और उसी के बीज को ध्यान से देखें तो आप पायेंगे कि उस बीज में एक वृक्ष छुपा हुआ है, और उस वृक्ष में अनेकों बीज हैं जो अपने अंदर एक वृक्ष को छुपाये हुये हैं बस हमे अपने मनोबल, आत्मबल और संकल्प की शक्ति से वृक्ष बनने की ओर अग्रसर होना है धैर्यधारण कर, लेकिन ध्यान से जुड़कर। अपने जीवन में प्रतिदिन चार बातें याद रखें अर्ज, मर्ज, कर्ज और फर्ज। दिन की शुरूआत अपने ईष्ट के ध्यान और नाम जप से करें इसे कहते हैं अर्ज। दूसरा है मर्ज, अपने शरीर को प्रतिदिन हल्के व्यायाम, प्राणायाम से रोगमुक्त रखने की ओर प्रवृत्त हों, यदि कोई छोटी बीमारी है तो उसका उचित इलाज करवायें क्योकि छोटी बीमारी ही एक दिन बड़ा रूप ले लेती है। हमें अपने शरीर रूपी रथ की रक्षा करनी है जिसमें हमारी आत्मा का वास है। तीसरा है कर्ज, कर्ज किसी भी तरह का हो उसे भूलना नही चाहिये, लेकिन कर्ज को चिंता में परिवर्तित होने से रोकना होगा, ऐसा न हो कि हम रात दिन कर्ज कैसे चुकेगा का तनाव पाल बैठे और अपना वर्तमान जीवन चिंता को चिता में बदल कर गुजारें। चौथा है फर्ज, हमें अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह किसी भी परिस्थिति में करना है स्वयं को स्वस्थ और चिंता रहित रख कर जो है उसी में संतुष्ट रह कर। हमें अपने व्यक्तित्व को भी बदलना होगा युक्ति, सुक्ति, मुक्ति और भुक्ति को अपना कर। कुछ लोग होते हैं जो लगातार कई वर्षों तक असफलता के तनाव को पाल बैठते हैं कि फलां व्यक्ति का विकास हो रहा है मेरा क्यो नही, तो हमें किसी अंकशास्त्री, ज्योतिषी या तांत्रिक की सेवाएँ नही लेते हुए स्वयं आध्यात्मिक ज्ञान और सत्संग की ओर प्रवृत्त होकर अपने अंदर युक्ति मतलब समझ लानी होगी जो कि स्वत: ही होती है पैदा नही करना पड़ती केवल जो प्रयास बताए गये हैं उन्हें अपनाना है। यदि आपके अंदर युक्ति अंकुरित होने लगती है तो सुक्ति मतलब आप का अपने आस पास के लोगो से व्यवहार सुधरता जाता है आप स्वयं ही लोगो से सम्मानीय व्यवहार करने लगते हैं मीठे वचनों द्वारा। तीसरा है मुक्ति जब हमारे अंदर युक्ति और सुक्ति के गुण आने लगते हैं तो हम केवल उतना ही कमाने में विश्वास करते हैं जितने में हम अपनी मन की शांति को बनाये रखे जिससे कि हमे धन और माया से मुक्ति का मार्ग दिखाई देने लगता है। चौथा है भुक्ति मतलब जब आप इन तीन युक्ति, सुक्ति और मुक्ति के गुणों का विकास अपने अंदर पाते हैं तो सांसारिक प्राणियों के बीच स्वयं को बेहतर पाते हैं और अपने जीवन और अपने धन का सही उपयोग करते हैं।
एक संत ने अपने अनुयायियों को एक सौ डालर का नोट दिखाकर कहा कि कौन इसे लेना चाहेगा, सभी ने अपने हाथ उठा दिये। तब उन संत ने उस नोट में थोड़ी धूल लगाई और फिर वही प्रश्न किया। फिर अधिकतर लोगों ने अपना हाथ उठा दिया। इस बार संत ने नोट को मोड़कर, गुड़ीमाड़ी कर फिर वही प्रश्न किया और वही उत्तर पाया सभी उस नोट को पाने के लिये अपने हाथ ऊपर उठाये हुये थे।
जैसे इस नोट की कीमत कभी कम नही होती, चाहे नोट किसी भी परिस्थिति में हो, क्योकि गवर्नर ने ये लिखा है नोट पर कि मै धारक को सौ रूपये अदा करने का वचन देता हँू वैसे ही परमपिता परमेश्वर ने हम सभी को समान शक्ति दी है। हमें दुर्दशा की धूल,कठिन परिस्थितियाँ और दुख-मुसीबते कितना ही दीन हीन कर दें लेकिन हमें अपनी जो अनंत शक्ति, जो हमारे अंदर प्रवाहित हो रही है उसे नही भूलना है। जो हमारे पापकर्म हमारी किस्मत बन कर सामने आ रहे हैं उन्हें तप और ध्यान और आध्यात्मिक ज्ञान से गलाना है ताकि बचे हुए पापकर्म किस्मत न बन पायें। शास्त्रों में कहा गया है कि परमात्मा भी हमारी किस्मत नही बदल सकते लेकिन वो हमारी टेढ़ी-मेढ़ी राह को आसान बना देते हैं,दुख और मुसीबतों को ढोने के लिये हमारे कंधे मजबूत कर देते हैं। चालाक लोगों के बीच अपने सीधे साधे भक्तों का भी गुजारा करा देते हैं। लोगो के सामने अपना रोना, रोना बंद कर एक संकल्प की शक्ति को जागृत करें कि मै साधनों और धन के अभावों के होते हुये भी अपने संकल्प को पूरा करूंगा क्योकि मेरे परमपिता की शक्ति मेरे साथ हैं जो कि अनंत है। मुझे भी उसी परमपिता ने बनाया है जिसने धरती, सूरज, चाँद और तारे बनाएँ हैं जिसने उन महान लोगो को बनाया जिन्होंने आज तक लोगो के मन मस्तिष्क में पेठ बना रखी है। जैसे पानी भाप में बदल कर अपनी शक्ति बढ़ा लेता है क्योकि उसमें सूक्ष्म शक्ति आ जाती है वैसे ही हमें ध्यान और नाम जप के साथ साथ पूरी तन्मयता से अपने परमपिता की भक्ति में कूटस्थ होना है। आज से ही दीन-हीन होकर हाथ फैलाने की आदत को छोड़ अपने सामर्थ्य के अनुसार सेवा कार्य कर पुण्य अर्जित करना है जरूरी नही कि हम पैसा खर्च करें सेवा कार्य के लिये, दिखावा करें। अगर आप राह से जा रहे हैं और और एक पत्थर राह में पड़ा है जिसकी ठोकर से किसी को हानि हो सकती है उसे राह से दूर कर दें। और छोटे मोटे सेवा कार्य करते हुए। बिना दिखावे के अपने परमपिता की भक्ति में लगे रहें। जिस बात से आपको भय लगता है जिससे आपकी धड़कने तेज हो जाती हैं बिना किसी कारण के, जिसे अनजाना भय कहते हैं उसे बार बार करें। उस भय से भागने से अच्छा से उस भय के पीछे भागें, जब भी आपको किसी तरह का अनजाना भय लगे, आप अपने मस्तिष्क को शांत कर, लम्बी गहरी साँसे लें , केवल अपने ईष्ट को याद करें, जैसे सूरजमुखी का फूल किसी भी परिस्थिति में अपना मुख सूर्य के ओर ही किये होता है चाहे वह धरती पर कहीं पर भी हो। ऐसे लोगों से दूर रहने की आदत विकसित करें जो आपका मनोबल गिराने के लिये पुरजोर कोशिश करते हों लेकिन बड़ी सावधानी से क्योकि निंदक ही है जो हमें आईना दिखाता है कि हम कैसे है फिर वह हम पर निर्भर करता है कि हम अपने आईने में दिखाई दे रहे प्रतिबिम्ब को पसंद करें या हीनभावना से ग्रस्त हो जाये और निराशा के समुद्र में समा जायें। किसी की प्रगति देख कर ये न सोचे कि मै यह नही कर सकता, मेरी तो किस्मत ही खराब है, स्वयं को कोसना छोड़ अपनी वर्तमान परिस्थितियों से किसी भी हाल में उठने की पुरजोर कोशिश करों। किसी वृक्ष को और उसी के बीज को ध्यान से देखें तो आप पायेंगे कि उस बीज में एक वृक्ष छुपा हुआ है, और उस वृक्ष में अनेकों बीज हैं जो अपने अंदर एक वृक्ष को छुपाये हुये हैं बस हमे अपने मनोबल, आत्मबल और संकल्प की शक्ति से वृक्ष बनने की ओर अग्रसर होना है धैर्यधारण कर, लेकिन ध्यान से जुड़कर। अपने जीवन में प्रतिदिन चार बातें याद रखें अर्ज, मर्ज, कर्ज और फर्ज। दिन की शुरूआत अपने ईष्ट के ध्यान और नाम जप से करें इसे कहते हैं अर्ज। दूसरा है मर्ज, अपने शरीर को प्रतिदिन हल्के व्यायाम, प्राणायाम से रोगमुक्त रखने की ओर प्रवृत्त हों, यदि कोई छोटी बीमारी है तो उसका उचित इलाज करवायें क्योकि छोटी बीमारी ही एक दिन बड़ा रूप ले लेती है। हमें अपने शरीर रूपी रथ की रक्षा करनी है जिसमें हमारी आत्मा का वास है। तीसरा है कर्ज, कर्ज किसी भी तरह का हो उसे भूलना नही चाहिये, लेकिन कर्ज को चिंता में परिवर्तित होने से रोकना होगा, ऐसा न हो कि हम रात दिन कर्ज कैसे चुकेगा का तनाव पाल बैठे और अपना वर्तमान जीवन चिंता को चिता में बदल कर गुजारें। चौथा है फर्ज, हमें अपने परिवार के प्रति जिम्मेदारी का निर्वाह किसी भी परिस्थिति में करना है स्वयं को स्वस्थ और चिंता रहित रख कर जो है उसी में संतुष्ट रह कर। हमें अपने व्यक्तित्व को भी बदलना होगा युक्ति, सुक्ति, मुक्ति और भुक्ति को अपना कर। कुछ लोग होते हैं जो लगातार कई वर्षों तक असफलता के तनाव को पाल बैठते हैं कि फलां व्यक्ति का विकास हो रहा है मेरा क्यो नही, तो हमें किसी अंकशास्त्री, ज्योतिषी या तांत्रिक की सेवाएँ नही लेते हुए स्वयं आध्यात्मिक ज्ञान और सत्संग की ओर प्रवृत्त होकर अपने अंदर युक्ति मतलब समझ लानी होगी जो कि स्वत: ही होती है पैदा नही करना पड़ती केवल जो प्रयास बताए गये हैं उन्हें अपनाना है। यदि आपके अंदर युक्ति अंकुरित होने लगती है तो सुक्ति मतलब आप का अपने आस पास के लोगो से व्यवहार सुधरता जाता है आप स्वयं ही लोगो से सम्मानीय व्यवहार करने लगते हैं मीठे वचनों द्वारा। तीसरा है मुक्ति जब हमारे अंदर युक्ति और सुक्ति के गुण आने लगते हैं तो हम केवल उतना ही कमाने में विश्वास करते हैं जितने में हम अपनी मन की शांति को बनाये रखे जिससे कि हमे धन और माया से मुक्ति का मार्ग दिखाई देने लगता है। चौथा है भुक्ति मतलब जब आप इन तीन युक्ति, सुक्ति और मुक्ति के गुणों का विकास अपने अंदर पाते हैं तो सांसारिक प्राणियों के बीच स्वयं को बेहतर पाते हैं और अपने जीवन और अपने धन का सही उपयोग करते हैं।
बहुत काम की पोस्ट, आभार!
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