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सोमवार, 7 मई 2012

विमुख Turning Point

राकेश अपनी दीदी के यहाँ पढ़ाई के उद्देश्य से शहर आया। यहाँ उसने पढ़ाई के साथ साथ एक छोटी सी नौकरी भी कर ली। प्रात: वह अपने रूम में बैठकर पढ़ाई करता । और दिन में एक फुल टाइम जॉव करता। कुछ महीनों तो वह शहर में आकर कुछ नया और उत्साह अनुभव करता था लेकिन कुछ दिनों बाद वह शहर के माहौल से ऊब गया। हर तरफ ग्लैमर और पैसे के पीछे अंधी दौड़। लोग अपनी जीवन को जीने के लिये मल्टीप्लेक्स में कोचिंग लेते से लगते जैसे वे नई रिलीज फिल्में उन्हें बताती हो कि कैसे कपड़े पहनने हैं कैसा फास्ट फूड खाना है आदि।
फिर भी राकेश अपनी पढ़ाई में ध्यान देता अपने जॉव को पूरी ईमानदारी से करता। लेकिन जैसे कि एक कहावत है कि काजल की कोठरी में कालौंच से कब तक बच सकते हैं। राकेश जिस रूम में पढ़ाई करता था उसमे एक खिड़की थी जो सीधे सामने वाली बिल्डिंग की बॉलकनी का व्यू दिखाती थी। एक दिन राकेश ने देखा कि वहां एक सुंदर लड़की जो कि एक संस्कारी मामूल पड़ती थी अपने परिवार के साथ रहने आई। एकदम चॉंद सा मुखड़ा, हिरनी सी आँखे और रूपमती। अब प्रात: राकेश पढ़ाई करते समय उसे ही निहारता रहता क्योकि सुबह के समय वह बालकनी में विचरण करती थी कभी झाडू  लगाती, कभी कपड़े सुखने डालती, कभी पोंछा लगाती। लेकिन राकेश उस नवयौवना को ये अहसास नही होने देता कि वह उसे निहार रहा है वह चोरी-चोरी उसे निहारता। उस लड़की को भी पता लग गया कि वह भी उसे निहारता है इसलिये वह उस बालकनी में ज्यादा समय तक विचरण करने लगी। ऐसे ही कुछ महीने बीत गये लेकिन इन कुछ महिनों में राकेश की दीदी ने देखा कि वह पढ़ाई में कम और उस लड़की पर ज्यादा ध्यान दे रहा है जॉव में भी वह कुछ अनियमित हो गया था। अब जो राकेश की दीदी थी वह सोचती कि कैसे इसे ये बताऊं कि उस लड़की को मौहल्ले के अन्य युवक और शादीशुदा सज्जन पुरूष भी निहारते हैं । और वह भी उन्हें निहारती रहती है। शहर में तो ये आम बात है लोग अपना जीवन और ध्यान इन मृगतृष्णा के समान दिखने वाली ग्लैमर लड़कियों के चक्कर में आकर बर्बाद करते हैं। जबकि ये उनके साथ कोई सहानुभूति नही रखतीं केवल एक पालतू तोता समझतीं हैं जिससे वे अपना मन बहलाती हैं। राकेश की दीदी ने तय कर लिया कि राकेश को किसी भी तरह शहर के माहौल में भटकने नही देना है। उसने एक दिन राकेश से कहा कि मेरी एक सहेली की नंद भी तुम्हारे ही सबजेक्ट से पढ़ाई कर रही है वह चाहती है कि तुम उसे कुछ गाइड कर दिया करो, मैने उसे कह दिया है कि तुम सुबह के समय जब पढ़ाई करते हो उस समय उसे तुम गाइड कर दिया करोगे जैसा कि दीदी को आशा थी राकेश ने हाँ कर दी। दूसरे ही दिन से दीदी की सहेली की नंद निशा वहाँ नियमित पढ़ाई से लिये आने लगी लेकिन दीदी ने उसे पहले ही दिन से कह दिया था कि कुछ दिनों के लिये मोबाईल मत लाना। तो वह नही लाई अब जब राकेश निशा के साथ पढाई कर रहा होता उसी समय वह बॉलकनी वाली युवती दिखाई देती लेकिन अब राकेश का झुकाव निशा कि ओर था। यह क्रम सप्ताह भर ही चला होगा कि वह युवती राकेश को देखती लेकिन राकेश निशा को पढ़ाने में खोया रहता। जब राकेश की दीदी को विश्वास हो गया कि राकेश अब निशा की ओर आकर्षित हो चला है तब दीदी ने अपने प्लान के अनुसार निशा से कहा कि अब तुम अपना मोबाईल अपने साथ ला सकती हो। अब दूसरे ही दिन से निशा अपने साथ मोबाईल लाने लगी लेकिन वह पढ़ाई कम करती अपने बॉय फ्रेंड से ज्यादा वार्तालाप करती । अब राकेश उस समय हीन भावना से ग्रस्त होकर उसी बालकनी में निहारता लेकिन वहाँ वाली जो युवती है उसे देखकर सड़ा सा मँुह बनाती उसे इंग्नोर करती । और एक दिन उस युवती ने उसे जोर से चिल्ला कर कहा कि मेरी ओर क्यो देखते हो, किसी दिन में अपने पिताजी को तुम्हारी शिकायत कर दूूँगी।  उस समय राकेश को जैसे जीवन की सच्चाई का अनुभव हो गया उसके पैरों तले जमीं खिसक गई। उस दिन से राकेश ने तय कर लिया कि भाड़ में जाये निशा और वह युवती। उस दिन से राकेश शहर की ग्लैमर और तन दिखाऊ लड़कियों से विमुख हो गया। अब दीदी खुश थी ं कि राकेश अब अपनी पढ़ाई पर ध्यान देता है बल्कि जॉव में भी नियमित हो चला है और पहले से काफी  गंभीर होकर अपनी दिनचर्या में व्यस्त रहता है। दीदी ने निशा को धन्यवाद दिया कि उसने उनकी सहायता की।
इस पूरी कहानी से आशय यह है कि जब पौधा नया नया होता है उसी समय हमें उसके भले के लिये कुछ टहनियाँ मोड़नी और तोड़नी पड़ती हैं जो कि आसानी से हो जाता है, ताकि वह सही दिशा में ग्रोथ या विकास कर सके। वैसे ही हमे समय रहते अपने बच्चों को बिना मारे पीटे और बिना प्रेशराइज या बिना दबाब डाले  प्रेक्टिकल अनुभव द्वारा उनके मन में ये बात हमेशा के लिये बैठाना होगी कि वह कार्य या क्रियाकलाप उसका कितना भला कर रहे हैं। लेकिन समय रहते। जैसे एक बड़ा पेड कहीं गलत दिशा में जा रहा होता है उसे हम उसकी टहनियाँ मोड़कर सही दिशा में नही कर सकते क्योकिं ज्यादा जोर देने पर वह टूट जायेंगी। हम लोग आज अपने बच्चे को दुनिया भर के कोर्स करा रहे हैं लेकिन ध्यान जिसे इंग्लिश में मेडिटेशन कहते हैं को भूल कर जबकि हम जो अपने पुराण, उपनिषद और गीता आदि पढ़ते हैं जिनका ये सार है कि मनुष्य पशुओं से अलग तभी कहलायेगा जब वह अपने मनुष्य जीवन में ध्यान द्वारा परमात्मा से जुड़ेगा। अधिकतर लोग जब बूढ़े हो जाते है तब उन्हें ध्यान और योग की बाते याद आती हैं उसी बड़े पेड़ की तरह जो कि बड़ा मुश्किल प्रतीत होता है। सारी शक्ति तो हम अपनी जवानी में नष्ट कर चुके होते हैं। यदि उसी शक्ति को शुरू से ही आज से ही अपने बच्चों को ध्यान लगाने की ओर प्रवृत्त करें। ताकि हमसे बेहतर युक्ति पूर्वक वे अपनी शक्ति को गलत दिशा में नष्ट न कर ध्यान की ओर मोड़ दें । उनके पास ग्लैमर के अलावा दूसरा आप्शन हो आनंदित को प्राप्त करने का जो कि परम आनंद अर्थात् परमानंद है।
एक बात ध्यान देने योग्य है जो हम सभी जानते हैं कि बुर्जुग बच्चों के समान होते हैं, सीखने की कोई उम्र नही होती और जब जागो तभी सबेरा। एक मनुष्य ही है जिसे परमात्मा ने असंभव को संभव कर सकने की शक्ति दी है ।

1 टिप्पणी:

  1. किशोरावस्था में भटकाव आसान है लेकिन ऐसे समय में दिशा-निर्देशन बड़े-बुज़ुर्गों की ज़िम्मेदारी है।

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