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गुरुवार, 23 अगस्त 2012

स्वयं के शोषण के लिये समझौता करने की आदत न डालें say no to compromise habit


हम सभी ने अक्सर ये अनुभव किया है कि यदि किसी बात के लिये हम कोई समझौता कर लेते हैं तो वही और उसी तरह की बात के लिये हम अपने अंदर एक आदत विकसित कर लेते हैं या कहें कि हम उस तरह की बातों को आमंत्रित करते हैं अपनी ओर क्योंकि हमें उस बात से समझौता करने की आदत लग चुकी है। इस तरह हम दूसरे के द्वारा लगातार स्वयं को शोषण का शिकार बना रहे हैं जो कि हमारे आत्मसम्मान और हमारी अन्याय न सहने की शिक्षा के विरूद्ध है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो समझौता नही करते वे सोचते हैं कि उनके वगैर दुनिया नही चलेगी और ये सोचते हैं कि उनका इस समाज में या कार्यस्थल पर कार्य सुचारू रूप से चलेगा। लेकिन हमें इस स्थिति में न रह कर यह सोच विकसित करनी होगी कि हमारे बिना दुनिया चल सकती है और चल भी रही है कई महान पुरूषों और राजा महाराजाओं के जाने के बाद भी लेकिन दुनिया के वगैर हमारा जीवन दुष्कर हो जायेगा। इसलिये हमें पूर्णरूप से सामंजस्य बनाते हुये अपना जीवन व्यापन करना है हमारी जो जिम्मेदारियाँ हैं उन्हें निर्वाह करते हुये लेकिन हर जगह एक से अधिक बार समझौता करना एक तरह से अन्याय को बढ़ाना और दुष्ट प्रवृत्ति को सम्मान और विकास के अवसर प्रदान करना है। यदि जल भी समझौता कर लें अपने बहाव या अपने निरंतर आगे बढऩे के विरूद्ध तो वह एक ही जगह रूक कर सडऩे लगता है और अपनी दूसरों की प्यास बुझाने के गुण को खोकर गंदे नाले का रूप धारण कर लेता है जिससे लोग किसी तरह का स्पर्श नही करना चाहते। इसे हम एक कहानी के माध्यम से समझने की कोशिश कर सकते हैं-