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शनिवार, 18 मई 2013

हर आदमी स्वतंत्र है अपना नर्क और स्वर्ग बनाने के लिये


virtual life vs real life
एक दृश्य-पति दोपहर में हाफ-डे यानी आधे दिन की छुट्टी लेकर घर पर अपनी कार से आया। भीषड़ गर्मी पड़ रही है कार में एसी चल रहा है वह घर के मेन गेट पर गाड़ी खड़ी करता है हार्न बजाता है। तभी मोबाईल की घंटी बजती है वह कॉल में व्यस्त हो जाता है गाड़ी चालू है एसी भी। उधर घर में पत्नी खिड़की से देख लेती है जो कि सास बहू के सीरियल देखने में व्यस्त है। सोचती है कॉल अटेंट कर लेने दो जब तक सीरियल का मजा लिया जाये। पति का कॉल खत्म होता है वह फिर हार्न बजाता है पत्नी फिर एक नजर देखती है लेकिन सीरियल का मोह उस पर हावी है सोचती है जल्दी ब्रेक आ जाये तो जाऊं। और यहाँ पति फिर दूसरे कॉल पर व्यस्त हो जाता है। इस तरह लगभग २० मिनिट तक यंू ही सोये हुये, बेहोश लोगों का एक दूसरे के प्रति व्यवहार चलता रहता है पति सोचता है पत्नि किसी काम में व्यस्त होगी और पत्नि सोचती है अब घर आ तो गये हैं अंदर में आ जायेंगे और जायेंगे भी तो कहाँ। फिर पति थकहार कर गाड़ी से उतर कर गेट खोलता है और गाड़ी अंदर पार्क करता है फिर पत्नि उसे ऐसा करते देखती रहती है खिड़की के पर्दे से और तुरंत टीवी बंद कर गेट खोलती है और चेहरे पर एक मुस्कान लाते हुये पूछती है आ गये। पति यदि इस समय यह कहे कि हार्न सुनाई नही दे रहा था क्या। तब क्या होगा सोचिये। इसलिये पति जो कि अनुभवी है तुरंत अंदर जाता है और पूछता है बच्चे कहाँ है पत्नि बताती है कि खेलने गये है अपने दोस्तो के साथ।
इस द़श्य में हमने एक बात नोटिस की, कि पति उस बड़ी चिंता या समस्या को छोड़ कर एक छोटी समस्या या चिंता के बारे में पूछता है कि बच्चे दिखाई नही दे रहे कहाँ गये। ये ऐसे ही है जैसे कोई हमसे कहे कि एक बड़ी लकीर या लाइन आपके सामने है उसे बिना छुये या बिना मिटाये छोटी करके दिखाओ तो जैसी कि बीरबल ने किया था उस पति ने भी उस बड़ी समस्या को छोड़ कर छोटी पर ध्यान दिया उसने उस बड़ी लकीर के पास ही एक छोटी लकीर खींच दी लेकिन स्वयं को भ्रमित किया कि वह बच्चों वाली समस्या बड़ी समस्या है उस समस्या के आगे। और पत्नी को लगा कि इन्होंने मेरी गलती को देखा ही नही पत्नी भी खुश और पति भी स्वयं को भ्रमित कर चुपचाप। इस तरह उसने अपना स्वर्ग कायम रखा।
हम दिन भर फेसबुक पर और दोस्तों के बीच देश की समस्याओं पर बहस करते हैं देश में ऐसा होना चाहिये, बैसा होना चाहिये लेकिन जब अपने घर की समस्याओं की बारी आती है तो चुपचाप सोचते है कि वह समस्या सुलझाई नही जा सकती यदि सुलझाने की कोशिश की तो हम अपना हम नर्क स्वयं निर्मित कर लेंगे। जरूरी नही कि ये हाल केवल पुरूषो का है यह हाल उन कामकाजी महिलाओं का भी है जो सोचती हैं जैसा चल रहा है चलने दो। बच्चें बड़े हो रहे हैं अब सुनते नही क्या करें। 
हमारी सोच ऐसी होती जा रही है कि हम केवल बड़ी समस्या को ही सुलझाने के लिये अपना दिमाग और कलम चलाएंगे छोटी छोटी समस्याओं में कौन उलझे और जैसा कि हम सबको पता है हम सब यही कर रहे हैं सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर कोई नेताओं की फोटोस को मिक्स कर अपनी भड़ास निकाल रहा है, कोई कविताऐं लिख कर अपनी वर्चुअल दुनिया में स्वर्ग का अनुभव कर रहा है रियल लाईफ के नर्क को भूलकर, कोई लगा हुआ है दूसरों को सिखाने अपना ध्यान छोटी छोटी समस्याओं से हटाकर। हम लोग दिन भर इतनी बड़ी बड़ी समस्याऐं अपने दिमाग में भर कर अपने घर पहुंचते हैं जैसे कि आज क्या हुआ देश में, कल क्या होगा, आज मेरी पोस्ट को कितने दोस्तों ने लाईक नही किया, उस फलां दोस्त ने अपनी फोटो डाली कल मै भी अपनी फोटो खींच कर फेसबुक पर डालूंगा। पेट्रोल के रेट क्यो बढ़ रहे हैं, देश में शेयर मार्केट आज क्यो गिरा, क्यो बढ़ा।
और इन समस्याओं को हम बढ़ा कर आंक रहें हैं ये हैं ही नही ये समय के साथ होने वाली घटनायें है जो कि आदी काल तक चलती रहेंगी। और जो मुख्य समस्या है जो हमारे घर पर हमारा इंतजार कर रही है उसे हम अनदेखा किये जाते हैं प्रतिदिन। अगर हमने इनकी ओर ध्यान दिया तो खुद भी परेशां होंगे और घर वाले अलग । लेकिन एक बात याद रखें यदि हमने दीमक को छोटी समस्या समझ कर स्वयं को भ्रमित किया तो एक दिन यह दीमक हमारे जीवन को खोखला कर देगा।
इस कहानी के माध्यम से हम समझते हैं-
एक बार मुल्ला नसरूद्दीन से किसी ने पूछा कि तुम्हारी अपनी पत्नि से लड़ाई क्यों नही होती वह तुम्हारी पूरी सेलरी मेकअप में और कपड़ो पर खर्च कर देती है। तब नसरूद्दीन ने कहा कि मेरी पत्नि से शादी से पहले ही मुझसे यह तय कर लिया था कि बड़ी समस्याऐं मै सुलझाउंगा और छोटी वह। इसलिये घर में में क्या आना है क्या नही आना है उसकी फ्रिक वह करती है मै तो केवल बड़ी समस्याओं की ओर ध्यान देता हंू कि पेट्रोल के रेट कम कैसे हों, शक्कर के भाव क्यो बढ़ रहे हैं, भ्रष्टाचार से जंग कैसे जीतें आदि। वह अपना काम करके खुश है और मै अपना काम पूरी ईमानदारी से करके खुश।

बुधवार, 15 मई 2013

किसी के फोटो में तिलक लगायें

sindoor tilak tilak.psd download for graphic use
सबसे पहले इस photo1 फाइल को  download कर इसे फोटोशोप में खोलें फिर उस फोटो को भी ओपन करें अब इस तिलक को कॉपी कर खुले हुए फोटो के माथे वेस्ट पेस्ट कर दें 

sindoor tilak

sindoor tilak
photo1

शनिवार, 11 मई 2013

आइये रियल लाईफ में एंग्रीवर्ड गेम खेंलें



इन्हे आजाद करें, एक खुला आसमान इंतजार में है इनके पंखों से स्वयं को नापने के लिये । भले ही आप रात दिन पूजा पाठ करते रहें, कितने भी पुण्य करें, यदि आपने एक जीव को कैद कर रखा है तो वह निरंतर प्रतिदिन अपनी स्वतंत्रता और आपके अंत के लिये प्रार्थनारत होगा। प्रतिदिन आपको और उस मंहूस घड़ी को कोसता होगा जब वह आपके या किसी शिकारी के चंगुल में फंसा।
हमने भले ही कितने ही ऊंचे विश्वविद्यालय से ढ़ेरों डिग्रीयां हासिल की हों लेकिन यदि हमने थोड़ी सी भी संवेदना किसी जीव की आजादी के प्रति नही है तो हमारी वह डिग्रीयां किस काम की। और हमारे माता-पिता ने तो हमें यह संस्कार नही दिये कि अपने घर में किसी जीव को कैद कर रखने पर हमें कोई वित्तीय फायदा होगा। ये तो भेड़ चाल का नतीजा है जो हम इस तरह के कर्म में रत हैं।
यदि आपके पडोसी के यहां या किसी रिश्तेदार के यहां इस तरह का कोई जीव कैद हो तो उसे भी समझाये कि उसके पंख खुले आसमान में उड़ने को तरस रहे हैं। हम मनुष्य होकर भी सोने की जंजीर से बंधना पसंद नही करते जबकि हमें सोने के मूल्यवान होने को पता है तो फिर ये जीव क्यों एक लोहे के सड़े से पिंजरे में कैद रहकर खुश रह सकता है।

भोपाल में विज्ञापन एजेंसीज

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मंगलवार, 7 मई 2013

क्या मानवाधिकार, नियम और कानून केवल अपराध में लिप्त महिलाओं के लिये हैं


ये पोस्ट लिखने का मै बहुत दिनों से सोच रहा था लेकिन इसे टालता आ रहा था क्यूकि  मुझे आज तक इस बात की जानकारी नही लग पाई कि अपराधियों को कैमरे या जनता के सामने लाने से पहले क्यो एक काले कपड़े से उनका मुंह ढांक दिया जाता है। मेरे मन ये विचार आता था कि यदि इनका चेहरा पब्लिक देख ले तो कितना अच्छा हो ताकि अगली बार यदि यही अपराधी उनके मौहल्ले, कॉलोनी या शहर में कहीं दिखाई दें तो लोग सतर्क हो जायें कि ये अपराध करने की नियत से यहां घूम रहा है।

भोपाल मे हर साल कम से कम ५-६ बार कार्लगल्र्स और मसाज पार्लर की आड़ में देह व्यापार करने वाली महिलाओं का रैकेट पुलिस द्वारा पकड़ा जाता है, लेकिन हर बार इन महिलाओं का चेहरा तो ढंका रहता है लेकिन बेचारे वो लोग जो इनके शिकार होते हैं जो किसी बेटी के पिता या किसी मां के बेटे या किसी बहन के भाई होते हैं जिनका नाम न्यूज में छपने पर उनसे जुड़ी कई जिन्दगियां प्रभावित होती हैं का नाम और फोटो वास्तविक नाम सहित छाप दिया जाता है। जैसे उन्होंने कोई रेप या बलात्कार किया हो। जबकि अपराध तो दोनों ने किया है मसाज पार्लर वाली महिलाओ ने और उनके ग्राहकों ने। तो इन न्यूजपेपर्स में केवल ग्राहकों का फोटो और नाम ही क्यो छापा जाता है। अभी पिछले साल भोपाल के कोहेफिजा क्षेत्र में एक देहव्यापार का भंडाफोड पुलिस द्वारा किया गया था जिसमें कि एक किशोर भी पकड़ा गया था जिसने कि बाद में एक सप्ताह बाद ही बदनामी होने पर आत्महत्या कर ली उसकी मां सदमें में पहुंच गई थी। मैने किताबों में पढ़ा है कि हमारा संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है तो फिर एक ही अपराध में लिप्त दो अपराधियों से भेदभाव क्यो।


यदि हमारा कानून या मानवाधिकार देह व्यापार के अपराध में लिप्त महिलाओं को ढंक रहें हैं ताकि उनका  सामाजिक जीवन बर्बाद न हो, तो उस पुरूष को क्यों लोगों के सामने लाया जा रहा है जो इनके चंगुल में फंस गया आखिर इन अपराध में लिप्त महिलाओं को सीधे साधे आम आदमी को आकर्षित करने में कितना समय लगता होगा। क्या उन पुरूषों की कोई सोशल लाईफ नही है जो इनके चंगुल में फंस गये और इनकी की ही तरह पकड़े गये, क्या उसके परिवार में विवाह योग्य बेटी, बेटा या माता-पिता नही है जिन्होंने पूरे जीवन भर अपने परिवार के लिये समाज में अपनी प्रतिष्ठा कायम की है। जो केवल एक बार इनके किसी न्यूज पेपर या न्यूज चैनल में नाम और फोटो छपने या प्रसारित होने पर मिट्टी में मिल जाती है।


आये दिन न्यूज पेपर्स में फ्रेन्ड्स क्लब और मसाज पार्लर में वर्गीकृत विज्ञापन छपते रहते हैं उन पर भी तो कार्यवाही होनी चाहिये । 

4-5th may 13 bhaskar

शुक्रवार, 3 मई 2013

एक बेहतरीन वेबसाइट

एक बेहतरीन वेबसाइट जहाँ से आप हर तरह के फॉण्ट डाउनलोड कर सकते हैं बिना किसी  झंझट के। DOWNLOAD SYMBOLS / ORNAMENTAL FONTS

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