मेरी इस पोस्ट का शीर्षक मै शुद्ध हिन्दी में लिखना चाहता था लेकिन मुझे अरेन्ज मैरिज की शुद्ध हिन्दी अपनी बोलचाल की भाषा में पता नही। मैने इस पोस्ट को लिखने से पहले एक सज्जन पुरूष जो कि एक अर्टिस्ट हैं से अरेन्ज और लव मैरिज के बारे के जानना चाहा तो उन्होंने कहा कि अरेंज मैरिज सबसे अच्छी होती है क्योकि इसमें ससुराल के लोग अपने दामाद की बड़ी इज्जत या आदर सत्कार करते हैं, बुरे समय के वित्तीय सहायता भी उपलब्ध कराते हैं और तो और आपके परिवार और आपके ससुराल के पक्ष के लोग बड़े प्रेम से एक दूसरे की सहायता के लिये तत्पर रहते हैं जबकि प्रेम विवाह या लव मैरिज में इन सब बातों के अवसर बहुत ही कम मिलते हैं यदि पति पत्नि के बीच कभी कोई मनमुटाव हो जाये तो ससुराल पक्ष के लोग हमेशा आपको और अपनी बेटी को ही जिम्मेदार ठहराते हैं जबकि अरेंज मैरिज में वे ये चाहते हैं कि मनमुटाव को टाला जाये। लेकिन ये सच्चाई आये दिन न्यूज पेपर्स में जो हम खबरें पढ़ते हैं उनमें दिखाई नही देतीं। लोग एक पक्ष को दहेज के लिये प्रताडि़त करने का दोषी बताते हैं।
अधिकतर लोग जो अरेंज मैरिज कर चुके हैं अपने अनुभव के आधार पर लव मैरिज को ही अच्छा बताते हैं क्योकि लव मैरिज में हम अपने मनपसंद के जीवन साथी को चुन सकते हैं विवाह से पूर्व ही हम उसकी कमजोरियों और गलत आदतों को स्वीकार कर चुके होते हैं। उसका रंग रूप भी हम अपने दिमाग में फिट कर चुके होते हैं कि उससे अच्छा और सुंदर कोई नही। लेकिन जहाँ तक मैने कुछ पुस्तकें पढ़ी हंै उनमें यह बताया गया है कि शुरू से ही हम अपनी पुत्री को पालते समय उसके दिमाग में यह बात प्रोग्राम्ड कर देते हैं कि किसी पुरूष या लड़के से प्रेम करना एक तरह का अपराध है या परिवार की नजरों में एक अमर्यादित कर्म है। अब यदि यही कन्या किसी अरेंज मैरिज के द्वारा किसी पुरूष की जीवन संगनी बनती है तो वह कैसे उसे प्रेम कर सकती है क्योकि उसे शुरू से ही यही सिखाया गया है कि प्रेम एक अपराध है।
आजकल जो गरीब तबके के परिवार होते हैं जिनके परिवार में विवाह योग्य लड़कियों की संख्या अधिक होती है वे अपने सामर्थ्य अनुसार अपनी पुत्री को पढ़ाते हैं और यह उम्मीद करते है कि वह अपने करियर के साथ साथ अपना जीवनसाथी भी स्वयं चुन ले और चाहे तो प्रेम विवाह ही कर लें क्योकि वे विवाह का भारी भरकम खर्च नही उठा सकते और जो विवाह के लिये वित्तीय औपचारिकताएं होती है उनसे भी छुटकारा पा सकते हैं। मेरे ख्याल से जो एक मुहावरा प्रचलित है कि पड़ोसी की बीवी सभी को अच्छी लगती है ये अरेंज मैरिज की ही देन है।
यदि आध्यात्मिक नजरिये की बात करें तो पश्चिम के लोग आध्यात्मिक अधिक होते हैं क्योकि वे सारी जिन्दगी घुंघट के पीछे क्या है के लिये समय बर्बाद नही करते क्योकि उनके यहाँ सब ओपन है जबकि हम पूरी जिन्दगी जो अरेंज मैरिज की देन है घुंघट, के पीछे क्या है जानने में समय बर्बाद करते हैं। और हम अपना पूरा मनुष्य जीवन प्रेम की एक बंूद की तालाश में नष्ट कर देते हैं जबकि इस जीवन में हमे प्रेम से परिपूर्ण होकर अपने मनुष्य जीवन के लक्ष्य को याद रख उस परमात्मा की खोज करनी चाहिये। जिसने हमें 84 लाख योनियों के बाद ये मनुष्य जीवन दिया। विषय वासना और इंद्रियों को तुप्त करते करते हम एक दिन बूढेÞ हो जाते हैं क्योकि हमें ये भ्रम रहता है कि हम प्रेम को इन इंद्रियों को तुप्त करके पा सकते हंै जबकि हमारी इंद्रियाँ कभी तुप्त नही होती हाँ बेजान जरूर हो जाती है लेकिन अभी भी प्यास बाकी रहती है प्रेम की। लेकिन एक बात और है कि भौतिक जगत में किसी नवयौवना या किसी व्यक्ति से प्रेम तब तक ही रहता है जब तक एक रहस्य बरकरार रहता है जब ज्ञान के द्वारा वह रहस्य हटता है तो वह प्रेम भी समय के साथ साथ कम होता जाता है जैसे एक सरल बालक जिसे ज्ञान के मोती नही मिले हैं वह समुद्र किनारे चमकीले पत्थरों को भी हीरे मोती की तरह संभाल कर अपनी जेब में रखता है लेकि न जब वह समय के साथ साथ वह अपने ज्ञान की वृद्धि करता जाता है तब उसे वे चमकीले पत्थर कचरा लगने लगते हैं और वह उन्हें फेंक कर रत्नों की खोज यानि परमात्मा के प्रेम की ओर अग्रसर होता है। इसके विपरीत कबीरदास जी ने प्रेम को ही सर्वोपरी माना है ढ़ाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडि़त होये। अब ये हम पर निर्भर करता है कि हम किस स्टेप से या जीवन में कहाँ से प्रेम को पाना चाहते हैं अपने प्रेम विवाह से या अपने माता पिता की आज्ञा से अरेंज मैरिज कर अपने परिवार और ससुराल पक्ष के बीच प्रेम बढ़ा कर और प्रेम पा कर।
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इस विषय पर आपके विचार पसंद आये। अरेंज मैरिज को हिन्दी में नियोजित विवाह कह सकते हैं। मेरी समझ में ऐसे रिश्ते का कोई मूल्य नहीं है जिसमें प्रेम नहीं हो। जिस तरह की शादी हमारे यहां होती है वे शादी कम सौदेबाजी अधिक लगती है जिसमें जाति का समान होना पहली शर्त होती है। अधिकतर नौकरीशुदा लड़के सुन्दर लड़की की ही अपेक्षा करते हैं। लड़की वाले दहेज नहीं दे तो फिर तो समझो हो गई शादी। अच्छे लड़के से भी आशय नौकरी वाले या पैसे वाले खानदान के लड़के से ही होता है। थोथी बातों के आधार पर रिश्ते बनते-बिगड़ते हैं। ये तथ्य किसी असभ्य, जाहिल और पिछड़े समाज के ही हो सकते हैं। इन तथ्यों से इन रिश्तों की गुणवत्ता का अंदाजा आप खुद ही लगा सकते हैं। ऐसी शादियों की तादात इसलिए अधिक है कि प्रेम और प्रेम विवाह करने की स्वतंत्रता नहीं है। लड़के-लड़की के स्वतंत्र रूप से मिलने की आजादी नहीं है। प्रेम और शादी को लेकर बचपन से की गई मेंटल कंडिशनिंग और दिमाग में भर दी गई वर्जनाएं उन्हें प्रेम करने से रोकती है। आज हमें सड़ी-गई परम्पराओं में फंसे रहकर अपना जीवन बरबाद नहीं करना चाहिए। इसी विषय पर कुछ औऱ अच्छे लेखों के लिंक दे रहा हूं उम्मीद है आप जैसे विचारशील इंसान को पसंद आयेंगें-
जवाब देंहटाएंhttp://matukjuli.blogspot.in/2011/10/blog-post_12.html
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