पृष्ठ

शुक्रवार, 22 जून 2012

हम स्वयं के निर्णयों के कारण दुखी हैं और कोसते भगवान को हैं। right decision with calm mind.


right decision with calm and cool mind.
शुरूआत करते हैं आम लोगों की भाषा से जो हर दूसरा व्यक्ति कहता है कि बड़ी मनहूस घड़ी थी जब मैने शादी की या उस घड़ी को कोसता हूँ जब जब मैने तुमसे शादी की या मेरी अक्ल घास चरने गई थी जब मैने फलां कम्पनी या शेयर मार्केट में ढेर सारा रूपया लगा दिया आदि। जल का कार्य होता है शीतलता प्रदान करना और प्यास बुझाना लेकिन जब वह अतिताप युक्त हो जाता है तो वह न हो शीतलता प्रदान करता है ना ही हम उससे अपनी प्यास बुझा सकते हैँ। यही हाल हमारा होता है जब हम उन्माद या क्रोध में आकर या किसी वासना या लोभ के कारण बिना सोचे विचारे केवल हसीन सपनों को देखते हुये कोई निर्णय ले लेते हैं तो हम कुछ समय बाद स्वयं को ही कोसने लगते हैं कि हमने कैसे बेहोशों की तरह निर्णय ले लिये जो आज हमारे वर्तमान जीवन को नर्क बनाये हुये हैं। जिनसे छूटकारे का कोई सरल उपाय नही सूझता। कुछ लोग तो रात दिन अपने ईष्ट देवता या कुल देवता को ही कोसते रहते हैं कि हम रात दिन आपकी पूजा करते हंै और आपने भी हमें इन गलत निर्णय लेने से नही बचाया या आपके होते हुये भी हमारा काम बिगड़ गया। और कुछ लोग तो नशे पत्ते के आदी होकर उस दुख को जो वे आज उन गलत निर्णयों की कारण भोग रहे हैं भूलाने की कोशिश में होते हैं लेकिन जब कुछ समय बाद नशा उतारता है तो वही दुख फिर उन्हें कचोटता है दुखी करता है। अब होना वही है जो होता है। वही बबूल के पेड़ वाली कहावत कि बबूल का बीज बोओगे तो अंत में कांटे ही मिलेंगे। यदि हम गहन एकांत में विचार करें तो हम स्वयं को ही गलत पायेंगे कि हमने अपने पूरे होश में ही निर्णय नही लिये किसी लालच में फंस कर निर्णय लिये।
आइये समझते हैं कि कैसे हम हर समय अपने पूरे होश में रहने की, मस्तिष्क को शांत रखने की कोशिश कर सकते हैं। ताकि हम एकदम सही निर्णय ले सकें। ऊपर मैने जो उदाहरण दिया कि उबलता हुआ गर्म पानी न तो शीतलता दे सकता है ना ही प्यास बुझा सकता है। और यदि आपने घोर मूर्खता का परिचय देते हुये किसी को या स्वयं को इस पानी से लाभ पहुंचाने की कोशिश की तो निश्चित ही हानि उठाना पड़ती है इससे हमे समझना होगा कि हम जब भी कोई निर्णय लें स्वयं को चेक करें कि हम किसी उन्माद या क्रोध में तो नही है यदि आप 1 परसेंट भी जरूरी निर्णय लेते समय स्वयं को इस अवस्था में पाते हैं तो उस निर्णय को टाले या उसे लम्बे समय तक विचार के लिये रखें। ये एक लम्बे अभ्यास से ही संभव है या अपने बुजुर्गों के समक्ष अपने लिये जाने वाले निर्णय रखें ताकि वे अपने मूल्यवान अनुभव और विचारों की कसौटी पर उन्हें कस सके या उनकी गलतियाँ बता सके, मार्गदर्शन दे सकें। एक और उपाय है कि आप अपनी वर्तमान संगत या अपने मित्रों की समीक्षा करें कि आप वर्तमान में कैसे लोगों की संगत में रहते हैं जिनका प्रभाव आपके स्वभाव पर पड़ रहा है जिससे आप कुछ गलत निर्णय ले लेते हैं या आपको लगता है कि कभी कभी आपका दिमाग काम नही करता। हमारी मित्र मंडली में कुछ मित्र ऐसे होते हैं जो हमारी हर बात का हंस हंस कर सपोर्ट करते हैं या हमारे कान भरते है और हमें सही निर्णय लेने से भटकाते हैं ताकि हम उनके द्वारा अपने लिये खोदी गई कब्र में स्वयं ही कूद जायें। चाणक्य ने कहा है कि दुष्टों और मूर्खों की संगति से अच्छा है अकेले ही रहो। जैसा कि हम अपने गं्रथों और पुराणों में पढ़ते हैं कि देवता हमेशा स्वर्ग में निवास करते हैं जबकि असुर या राक्षस नर्क मे होते हैं हमेशा लोगों को सताना स्वयं भी चैन से ना बैठना देवताओं को भी चैन से ना बैठने देना उन्हें सताना आदि। हम राक्षसों से पीछा तो छुड़ा सकते हैं लेकिन जो राक्षस हमारे अंदर क्रोध, परनिंदा, दूसरों की चुगली, ईर्ष्या, अनजाना भय, लोभ आदि बन कर हमारा ही पतन कर रहें हैं उससे कैसे बचें उपाय आसान है इन विकारों की स्थिति में स्वयं को व्यस्त कर दें किसी अन्य जरूरी कार्य या सत्संग में ताकि धीरे धीरे जो कालापन हमारी आत्मा के प्रकाश को आने नही दे रहा है को हम आध्यात्मिक ज्ञान और सत्संग से मिटा सकें। और हमारे लिये गये निर्णय हमें स्वर्ग जैसा अनुभव करा सकें। याद रखें कि जब भी इनमें से एक भी विकार आपके मन पर हावी हो आप कोई भी महत्वपूर्ण या ऐसा निर्णय न लें जो भविष्य में आपके जीवन को प्रभावित करे।
याद रखें कि भगवान हमें अपनी गदा, तलवार या धनुष तीर या लाठी या अपने कोप आदि से दण्ड नही देते। हमारे कर्म और हमारी आदतें या संगत ही हमारी बुद्धि फेर देती हैं या उलटी चला देती है और जिसे हम कहते हैं विनाश काले विपरीत बुद्धि। जैसे भगवान राम की माता कैकयी की बुद्धि हो गई थी जबकि वे ही राम को सबसे ज्यादा स्रेह करती थीं। हम अपने दुख के समय जो हम अपने ही लिये गये निर्णयों के कारण भोग रहे होते हैं हमेशा भगवान को ही कोसते हैं जैसे हे भगवान तूने ये क्या किया, मेरी तो किस्मत ही फूटी है आदि कहकर। हमें यह समझा होगा कि जैसे कोई पिता अपने पुत्र का किसी भी परिस्थिति में बुरा नही चाहता उसी तरह परमात्मा भी हमारा बुरा नही करता। परमात्मा वही है जो हर जीव या हमारे जन्म लेते ही हमारे लिये दूध का बंदोबस्त कर देते हैं क्योकि हमारे मुंह में उस   समय खाने के लिये दांत नही होते। इसे हम इस कहानी के माध्यम से समझते हैं कि कैसे हम गलत है परमात्मा को कोसने के मामले में-
एक बार मुल्ला नसरूद्दीन मोहल्ले के कुछ बच्चों के साथ मेले में गये वहाँ एक खेल वाला तीरों से दूर रखी वस्तुओं पर निशाना लगाने पर दुगुने पैसे देने का दावा कर रहा था। नसरूद्दीन ने भी उस खेल को खेलने के लिये पैसे दिये पहला तीर चलाया वह चूक गया और आधे रास्ते में ही गिर गया। वहाँ उपस्थित लोगों की भीड़ हंस दी। मुल्ला ने अपने साथी बच्चों से कहा कि आओ मै तुम्हे बताना हूँ कि यह तीर क्यों निशाने पर नही लगा अब पूरी भीड़ जो हंस रही थी गंभीर हो कर कान लगाकर सुनने लगी। मुल्ला बोला कि ये तीर उस सिपाही का था जिसमें आत्म विश्वास नही था इसलिये उसने पूरे आत्म विश्वास से तीर नही चलाया। अब मुल्ला ने एक ओर तीर चलाया लेकिन वह तीर निशाने से कहीं अधिक दूर आगे जाकर गिरा। भीड़ दुबारा हंसने लगी। मुल्ला ने बच्चों को फिर बताया कि यह तीर उस सिपाही का था जिसमें अति आत्मविश्वास था और जो अपने लक्ष्य को भूलकर भटक गया। अब मुल्ला ने अंतिम तीसरा तीर चलाया जो कि निशाने पर लगा। तब भीड़ से अवाज आई ये किसका तीर था मुल्ला। तब मुल्ला नसरूद्दीन चिल्ला कर बोला ये मेरा तीर था। जो निशाने पर लगा, वह तो उन सिपाहियों के तीर थे जो मेरे द्वारा अपना तीर चलवा रहे थे।
इस कहानी के माध्यम से हम समझ सकते हैं कि हम अपने कार्य या निर्णय द्वारा सुख भोगने पर स्वयं को सफल व्यक्ति के रूप में संसार में विज्ञापित करते हैं या हीरो बनते हैं जबकि कार्य के असफल या निर्णयों के कारण दुख भोगते समय भगवान को कोसते हैं। 


हमें परमात्मा ने मनुष्य जीवन दिया और हमारे कर्मों पर अपना बंधन नही रखा ताकि हम स्वयं ही अपनी किस्मत बनाये या अपनी समझ, चेतना और योग्यता के बल पर इस संसार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराएँ। जैसे हमें परमात्मा ने गेहंू दिया अब चाहे तो हम उससे रोटी बनायें, बे्रड बनायें, केक बनायें, पेटिस बनायें आदि। और इसी तरह परमात्मा ने हमें गन्ना दिया अब इससे हम चाहें तो चीनी बनायें, गुड़ बनायें और इसके सहयोग से रसगुल्ले बनायें, पेडेÞ बनायें, गुलाब जामुन बनायें, बर्फी बनायें आदि जो भी हमें अपनी योग्यता और समझ से सूझता हो बना सकते हैं अब यदि आप गेहंू और चीनी के सहयोग से कुछ ऐसी रेसीपी या व्यंजन बनालें जो आपका पेट खराब कर दें तो इसमें परमात्मा का क्या दोष। हाँ यदि हमें परिस्थितियाँ और हमारे दुख कुछ सूझने नही दे रहे और हमारा आत्मविश्वास जाता जा रहा है हर ओर हमें निराशा हाथ लग रही है तो हमें ध्यान, प्रणायाम और सतत् आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा इससे छुटकारें के लिये प्रवृत्त होना होगा अन्यथा हमारे शरीर रूपी लालटेन के कॉंच पर जो विकारों रूपी कालोंच जमती जा रही है उसके कारण हम अपनी सोये हुये आत्मविश्वास और शक्ति से परिचित नही हो सकते।


मनुष्य की सबसे बड़ी कठनाई, मनुष्य का अपने प्रति ही अज्ञान है। जैसे दीये के नीचे अंधेरा होता है, मनुष्य उस सत्ता के प्रति अंधकार मे है। हम स्वयं को नही जानते। अब यदि हमारा सारा जीवन गलत दिशाओं में चला जाये तो आश्चर्य करना व्यर्थ है। तुम गलत कामों को बदलने की कोशिश करते हो लेकिन ये नही देखते कि वे गलत काम तुमसे ही पैदा हो रहे हैं। तुम एक गलत काम बदलोगे, दूसरा गलत काम पैदा जो जायेगा।
                                                                 -ओशो

2 टिप्‍पणियां: