शुक्रवार, 27 सितंबर 2024

The Aadhaar generation is under process

Problem The Aadhaar generation is under process of verification with State Government Authorities (at District / sub-district / Tehsil as per address provided at the time of enrolment).

कोई व्यक्ति जो 18 साल से ऊपर है और जिसका आधार बनने में कम से कम 6 महीने लगते हैं उसका 6 महीने बाद ही यदि एनरोलमेंट आईडी से चेक करने पर यही बता रहा है जो ऊपर इंग्लिश में दिया गया है तो नीचे मैंने आपको तरीका बताया है यह करें क्योंकि मेरी बेटी का भी 1 साल से इसी तरह से आधार कार्ड अटका हुआ था

जहां आपके क्षेत्र का तहसील कार्यालय है जहां तहसीलदार महोदय बैठते हैं उनकी आईडी पर एक फाइल होती है पूरे डॉक्यूमेंट ले जाकर उस फाइल को ओके करवाइए डॉक्यूमेंट का वेरिफिकेशन करवाइए उसके एक हफ्ते बाद अगर 6 महीने पूरे हो चुके हैं तो आधार कार्ड बन जाता है मेरे साथ भी यही प्रॉब्लम थी मेरी बच्ची की। 


पलायन

यहां सबसे पहले मैं आपको पलायन का मतलब अपनी भाषा में समझा देता हूं। पलायन का मतलब होता है जब परिस्थितियों को हम भारी कोशिशें के बावजूद अपने पक्ष में नहीं कर पाते या अपने विरुद्ध होने से नहीं रोक पाते मतलब परिस्थिति को चेंज नहीं कर पाते और अपनी हार मानकर अपना बारूद ना खर्च करते हुए वहां से निकल जाते हैं उसे हम पलायन कहते हैं यदि कोई आपके लिए विपरीत परिस्थितियों पैदा कर रहा है तो वह उस सूअर की भांति है जो कीचड़ में आपको लड़ने के लिए आमंत्रित कर रहा है क्योंकि उसे तो आदत है उस कीचड़ में रहने की और लड़ने की लेकिन आपको डर लगता है कि आपके कपड़े गंदे हो जाएंगे और लोग देखेंगे तो क्या कहेंगे तो पलायन की कुछ यहां पर मैं संक्षिप्त में सच्ची कहानियां लिख रहा हूं जिससे हमें अपने जीवन में कुछ मार्गदर्शन या आपको कुछ मार्गदर्शन मिल जाएगा

पहली कहानी

तीन भाई बहन होते हैं जिन्होंने अभी-अभी होश संभाला है उनके पिता कड़ी मेहनत करते हैं शहर से बाहर टूर रहते हैं और उनकी मां शहर में रहकर बच्चों के देखभाल करती है एक शातिर दिमाग व्यक्ति उनकी मां को अपने प्रेम जाल में फंसा लेता है और मां चरित्रहीनता की हद पार करके अपने पति को धोखा देने लगती है जब उनके पिता को यह सब बात पता पड़ती हैं तो वह अपने पत्नी को आजाद करते हुए उसे तलाक की मांग करते हैं पत्नी एक शर्त पर ही तलाक देने को तैयार होती है की तीनों बच्चे मुझे ही दो मैं उन्हें पाल लूंगी पिता उन छोटे-छोटे बच्चों को तलाक के खातिर छोड़ देते हैं फिर वह चरित्रहीन औरत अपने प्रेमी के साथ मिलकर दो भाइयों और एक बहन को पालते हैं लेकिन उन्हें नौकरों की तरह। उन्हें फ्री में नौकर मिल जाते हैं धीरे-धीरे यह लोग बड़े होते हैं किसी तरह अपनी पढ़ाई करते हैं लेकिन उन्हें पता पड़ जाता है कि चरित्रहीन मां ने हमें नौकर बना कर रखा हुआ है सौतेले पिता के बारे में तो फिल्मों में आपने देखा ही होगा ठीक उसी तरह उन तीनों भाई बहनों पर अत्याचार होते हैं जो सबसे बीच का भाई होता है वह विद्रोह करते हुए वहां से अपना बोरिया बिस्तर समेट कर पढ़ाई बीच में छोड़कर निकल जाता है और दर दर की ठोकरे खाते हुए किसी तरह सेल्फ डिपेंट बनता है भले ही वह रूखी सूखी रोटी खाता है लेकिन पलायन करके वह अपने आप को स्वतंत्र महसूस करता है।


दूसरी कहानी

एक किशोर जवानी की दहलीज पर कदम रखते हुए एक लड़का शहर की कम सैलरी की जॉब छोड़कर अपने दोस्तों के कहने में आकर गांव खेड़े में स्थित इंडस्ट्रियल एरिया में फैक्ट्री में जॉब करने निकल पड़ता है क्योंकि वह जिंदगी भर शहर में रहा है तो उसे गांव के एरिया में रहने में उसे बहुत परेशानी आती है ना तो वहां मन की चीज खाने को मिलती हैं ना वहां शहर जैसा माहौल । गांव में हरियाली तो है ताजी हवा भी है लेकिन कोलू के बैल की तरह दिनभर फैक्टरी में काम करके घर पर आकर दाल रोटी सब्जी इसी तरह लगभग 1 साल तक उस लड़के ने उसे इंडस्ट्रियल एरिया में किसी तरह जॉब करते हुए निकाला लेकिन उस फैक्ट्री में उसकी कोई तरक्की नहीं हुई क्योंकि वहां कोई तरक्की होती भी नहीं थी । अफसर सुपरवाइजर कैटेगरी के लोग सब शहर से नियुक्ति पर आते थे मजदूरों को आगे नहीं बढ़ने दिया जाता था अब बेचारा शहर से अपना बोरिया बिस्तर समेट कर गांव आया था और शहर में दोबारा सेटल होने के लिए मकान किराए पर लेने के लिए ढेर सारे पैसे की जरूरत होती है वह ऐसे ही 1 साल और निकाल देता है लेकिन उसका बिल्कुल भी मन फैक्ट्री के काम में नहीं लगता क्योंकि वहां पढ़ा लिखा होता है। वह तरक्की और ज्यादा सैलरी के लालच में फैक्ट्री में जॉब करने के लिए आया था उसके जो दोस्त उसके साथ आए थे धीरे-धीरे करके वह सभी शहर में वापस चले गए क्योंकि उनके मां-बाप रहते थे उनको कोई परेशानी नहीं आई शहर में वापस जाने में इसलिए वह चले जाते हैं लेकिन यह बेचारा जो की वन मैन शो था शहर में कोई नहीं था उसका उसको पैसे की जरूरत शहर में शिफ्ट होने के लिए होती है लेकिन उस जमाने में लगभग यह बात है सन 1999 2000 की थी उसके पास पैसे जुड़ नहीं पाते। फिर वह ठान लेता है कि भले शहर में भीख मांगने पड़े अब यहां नहीं रहना फिर वह गांव में पूरा सामान अपना वैसे का वैसे ही छोड़कर फैक्ट्री की नौकरी वैसे की वैसी छोड़कर एक बस में सवार होकर शहर निकल जाता है शहर में आकर नौकरी करता है वही सो जाता है धीरे-धीरे करके अपना बंदोबस्त कर लेता है लेकिन उसके लिए उसे पलायन करना पड़ा।


तीसरी कहानी

एक व्यक्ति जो की हुनरमंद था अच्छी नौकरी कर रहा था लेकिन अच्छी लाइफस्टाइल के चक्कर में धीरे-धीरे में कर्जे में फसता चला गया उसे अपने जॉब में जो सैलरी मिलती थी वह कर्ज चुकाने के बाद हाथ में सेविंग के नाम पर कुछ नहीं आती थी । छोटी फैमिली थी बीवी बच्चे तो वहां कुछ नया करने का सोचने लगा फिर एक दिन जॉब छोड़ दी और जो छोटी-मोटे बचत थी उसे अपना बिजनेस स्टार्ट किया लेकिन एक महीने में ही उसे समझ में आ गया के बिजनेस एक टीमवर्क है जो कि बिना गॉडफादर के नहीं हो सकता फिर उसने एक छोटी सी दुकान स्टार्ट की दुकान चलने लगी लेकिन जो कर्जा नौकरी छूटने के बाद चुक नहीं पा रहा था । बिजनेस में भी नहीं चुक रहा था धीरे-धीरे वह बिजनेस के चक्कर में कर्ज को अपने से ऊपर करता गया और एक दिन यह स्थिति आई उसे लगने लगा कि अब उसे सुसाइड करना पड़ेगा फिर उसमें थोड़ी हिम्मत आई और उसने बिजनेस बंद करने की ठानी और लाखों का सामान कवाड़े में बेच दिया। दुकान खाली कर दी बीवी के गहने बेच दिए लेकिन कर्ज खत्म नहीं हुआ कर्जदार घर पर चक्कर लगाने लगे फिर उसने उस एरिया को छोड़कर और कर्जदारों के हाथ पैर जोड़कर किसी तरह एक बाइक खरीदी और उस पर ऑनलाइन टैक्सी चला कर अपने परिवार को पालने लगा लेकिन उसेअपने सपनों से पलायन करना पड़ा और एक नॉर्मल जिंदगी जो कि नॉर्मल से भी बत्तर थी गुजर करनी पड़ी। लेकिन अब उसकी हाय तौबा खत्म हो चुकी थी और उसे अब थोड़ा सुकून मिला।


रविवार, 15 सितंबर 2024

सफल आदमी के पीछे हमेशा एक औरत क्यों होती है

 एक सफल आदमी के पीछे एक औरत होती है अब वह एक औरत कौन होगी या तो उसकी वाइफ या उसकी मां या फिर कोई बाहर वाली यह तय कौन करेगा। वह जिसने भी  यह कहावत बनाई वह जरूर अपनी वाइफ से डरता होगा। वह अपनी वाइफ को यकीन दिलाता होगा कि उसकी लाइफ में एक ही है। आदमी को सफल बनाने में उसकी मां और वाइफ दोनों हो सकती हैं

संबंधों को दूषित होने से बचाए

 रात के समय सोशल मीडिया में न जाने क्या हो जाता है वेब सीरीज के स्कैंस दिखाए जाने लगते हैं ऐसा लगता है वेब सीरीज के विज्ञापन चल रहा है भाभी देवर के साथ लगी हुई है बहु ससुर के साथ बेटे का दोस्त मां के साथ बैठा हुआ है और न जाने मनगढ़ कुछ भी दिखाया जा रहा है जिससे समाज दूषित हो रहा है वेब सीरीज टोटल बंद कर देनी चाहिए इन सब चीजों को देखकर लोग ऑफिस में ध्यान कम लगाएंगे घर के बारे में ज्यादा सोचेंगे घर के पीछे उसकी वाइफ सिक्योर है या नहीं।

कुछ तो करो

 अगर जनता द्वारा चुनी गई  सरकार ट्रेनों में जनरल डब्बों की संख्या बढ़ा दे तो लोग हैरान परेशान होकर यात्रा न करें उल्टा सरकार ने कंफर्म रिजर्वेशन होने पर ही रिजर्वेशन के डब्बे में एंट्री चालू कर दी है अन्यथा टिकट कैंसिल। लोग रहने के लिए ट्रेन में नहीं जाते हैं कोई मजबूरी में ही जाते हैं कांग्रेस ने 70 साल में कुछ किया कम से कम आप तो जनरल डब्बों की संख्या बढ़ा सकते हैं। बहुत कुछ कर सकते हैं। ट्रेनों में एक डब्बा ऐसा रखना चाहिए जिसमें गंभीर बीमारियों के मरीज एक शहर से दूसरे शहर जा सके उसमें मेडिकल स्टाफ भी हो और उसके लिए कोई फीस न हो। टीवी का मरीज भी आम इंसानों के बीच में बैठकर यात्रा कर रहा है।

कुछ नई शुरुआत करें

 थोड़ा ट्रेंड चेंज होना चाहिए यदि कोई हॉस्पिटल में भर्ती है मीडियम क्लास है तो फल फ्रूट के साथ-साथ हो सके तो एक लिफाफे में कुछ पैसे देकर आइए । जो आप शादी में लेकर आते हैं क्या पता उसकी बहुत मदद हो जाए शादी में तो आप कोई छोटा-मोटा गिफ्ट देकर भी काम चला सकते हैं। भिखारी हाथ फैला कर भीख मांग लेगा लेकिन आपका रिश्तेदार आपका पहचान वाला इसमें अपना आत्मसम्मान खो देगा। जितने भी संगी साथी देखने जाएं सबको सही संदेश दे के लिफाफे में कुछ ना कुछ  जरुर दे कर आए।

शुक्रवार, 13 सितंबर 2024

कल्पना वास्तविकता में बदली

 बचपन में जब मैं छोटा था उस समय ना तो मोबाइल था टीवी कलर बड़ी मुश्किल से देखने को मिलती थी उस समय मैं सोचता था कि बस बैटरी से क्यों नहीं चलती क्योंकि पापा जब खिलौने लाते थे वह सेल से चलते थे आज मैं खुद देखता हूं इतनी बड़ी-बड़ी बसे बैटरी से चल रही है। आज मैं वह सब चीज़ सोचता हूं तो मुझे लगता है कि मैं पहले दूसरी दुनिया में था। लोग बोलते हैं 70 साल में क्या हुआ 30 साल में यह इतना बड़ा चेंज आ गया