आज मै यहां बहुत दिनों बाद लिख रहा हूं क्योकि मैने अपने ग्राफिक्स डिजाईनर की जॉब अक्टूबर 2015 में छोडकर, एक चाय की दुकान अपने घर के पास ही खोल ली है। पिछले 15—16 वर्षों से जॉब करते करते मुझे समझ आ गया कि भोपाल जैसी सिटी में ग्राफिक्स डिजाईनर के जॉब में सेलरी एक सीमित आंकडे तक ही मिल सकती है यदि अच्छी जगह जॉब मिल गया तो। पेरेन्ट्स का बेक सपोर्ट बिलकुल नही है तो सोचा कुछ रिस्क लिया जाये, फंड बिलकुल नही था। इसलिये एक बेकवर्ड कॉलोनी में सस्ती सी दुकान किराये पर ले कर चाय की दुकान शुरू की। पूरी जमापूंजी से छ: आठ माह घर का खर्च चलाया अब कहीं जा कर कुछ आमदनी होने लगी है। आगे की कहानी बाद में...
आज मै यहां दैनिक भास्कर के नबवर्ष 2017 अंक की कुछ खास बातें संजो रहा हूं मुझे तो इस में बहुत कुछ सकारात्मक लगा।
नववर्ष की मंगलकामनाएं ।
जवाब देंहटाएंBhagat Bhai, Aapne Risk liya Zindagi ka Yehi Phalsafa hain. Risk loge to is Paar ya uss Paar. Kahi to Thor Milega hi. Aapne Badi himmat ka Kam Kiya Hain. Aapki Chay ki Shopp Ek Bade Restaurant me Tabdil ho Main Yehi Ishwar se Dua Karta Hoon.
जवाब देंहटाएंSANJAY TARANEKAR