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शनिवार, 3 फ़रवरी 2024

बचपन की मार

 जितनी बचपन में मार हम लोगों ने अपने मां-बाप से खाई है जो भी हाथ में आया उसी से मारा गया । अगर उसकी एक परसेंट मार भी हमारे बच्चों को पड़ जाए तो  वे कोमा में चले आए। बचपन में कुछ माये सोचती थी कि पत्थर से रगड़ने से बच्चा गोरा हो जाएगा। चिमटे झाड़ू और पाइप से पीटने से बच्चा पढ़ाई में तेज हो जाएगा। स्कूल में टीचर नए नए तरीके ढूंढ के लाते थे मारने के।

पहले घर में मां से मार खाओ फिर पिता जी से फिर क्लास टीचर से फिर प्रिंसिपल से । कॉलेज में रैगिंग होती थी भयंकर सो अलग। 

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