The power of social networking sites
पुराने जमाने में होता ये था कि एक बेचारा या बेचारी पर सरेराह जुल्म ढाये जाते थे और जुल्म केवल चार लोग ही ढाते थे बाकी जिसे जनता कहते हैं जिनकी संख्या उन चार जुल्मी से दस गुनी चालीस होती थी केवल तमाशा देखते थे और कर कुछ नही पाते थे केवल अपने अंदर एक भय पैदा कर चुपचाप रहते थे। लेकिन अब इस तरह के चार लोग जब दु:साहस कर लोगों पर जुल्म ढाहाते हैं तब वे चालीस के चालीस बोलते तो कुछ नही लेकिन उनकी अंगुलिया अपने मोबाईल के की-पेड पर एक्टिव रहती है फेसबुक, टयूटर पर और उनके मोबाईल के कैमरे भी लगातार उस दरिंदगी को रिकार्ड करते रहते हैं और एक ब्लॉगर होता है जो घर आकर अपने लेपटॉप या डेक्सटॉप पर जो पूरी स्टोरी जो उसके दिमाग में फीड होती है को अपने ब्लॉग के माध्यम से और न्यूज बेव साईटों पर शेयर करता है। तब वे चार जुल्मी को लपेटे में आते ही है उनके जैसे चालीस जो उनके ही विरादरी के होते हैं वे भी नही बच पाते। जब किसी का कच्चा चिठ्ठा एक बार नेट पर आ जाये तो हम सभी जानते हैं उसकी यात्रा अनंत होती है प्लेग की बीमारी से भी उसकी स्पीड फैलने के मामले में तेज होती है यूट्यूब और जाने कौन कौन सी साइटे एक सर्च में सामने आती हैं कर दो जहाँ चाहो लोड विडियो। अब बताईये हम कहाँ आलसी है हाँ हमें उन लोगो ने बदनाम कर रखा है जो केवल नेट पर अपोजिट सेक्स के वक्षस्थल, नितम्ब और न जाने क्या-क्या क्रीया कलापों में व्यस्त रह कर जो परिश्रमी नेटजीवी है उन्हें बदनाम करते हैं। कुछ तो, कुछ सिखाना ही नही चाहते बाबा आदम के जमाने के गेम आॅनलाइन खेलने में अमूल्य समय बर्बाद करते हैं। कुछ हैं जो केवल एक लालची की तरह सोचते हैं कि जितनी संख्या में लड़कियों और अपना अंग प्रदर्शन करने वाली नकली या फेक प्रोफाईल वाली महिलाओं और नवयौवनाओं को अपनी फें्रड लिस्ट में एड करें उतना रूतबा बडे। किसी किसी नवयौवना वाली फोटो प्रोफाइल में फेंड्स की संख्या तो 5000 की करीब तक होती है उसके लिये तो अपनी एक दिन की वॉल पोस्ट पढ़ने में साल के 365 दिन भी कम पडें। और तो और कुछ होतीं है बूढ़ी घोड़ी लाल लगाम उनकी जब फोटो एल्बम का निरिक्षण करो तो पता चलता है उन्होंने ओल्ड ऐज होते हुए भी किसी बॉलीबुड अभिनेत्री की फोटो अपने प्रोफाइल पर चिपका रखी है, ये ऐसे ही होता है जैसे किसी मंूगफली को छिलने में एक सड़ा दाना निकले। अब आप ही सोचिये ऐसे लोग जिनकी फें्रड लिस्ट में हजारों की संख्या में लोग मौजूद हों वे क्या करते होंगे फेसबुक पर। कुछ लोग तो दिनभर चेटिंग और चिटिंग में ही मजे लेते हैं ऐसे ऐसे इंग्लिश के वर्ड यूस करते हैं कि उनकी तो नए सिरे से डिक्शनरी छापनी पड़े ऐसे लोग जब आगे चलकर अपने बच्चों को यदि इंग्लिश पढ़ायेंगे तो उन्हें बहुत से शब्दों की ठीक स्पेलिंग ही याद नही आयेगी। कथा तो अनंत है आप अपने कमेंट्स के माध्यम से और बतायें कि कैसे हम परिश्रमी, ईमानदार लोग लगे रहते हैं। और लोग हमें आलसी कहते हैं। कुछ देशों की तानाशाह सरकारें ऐसी है जो हम जैसे अपने देशवासी ईमानदार, परिश्रमी नेटजीवियों से तंग आ चुकी हैं जो अपने देश में इन साइटों को ब्लॉक करके भी शुकुन महसूस नही कर पातीं।
बढ़िया संदेश.
जवाब देंहटाएंबढ़िया संदेश.
जवाब देंहटाएंवाह!
जवाब देंहटाएंकाफी सधा हुआ और दिलचस्प लेख है| बधाई|
sahi kaha aapne achha aalekh
जवाब देंहटाएंवाह...बहुत सुन्दर, सार्थक और सटीक!
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
सूचनार्थ!
bahut sundar bilkul theek kaha aapne
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