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मंगलवार, 28 फ़रवरी 2012

स्वयं को कमेंट्स और समस्या प्रूफ बनाये दृढ़ इच्छा शक्ति से

हम जब भी कोई सामान खरीदते हैं तो सेल्समेन हमें बताता है कि ये शॉक प्रूफ या जंगरोधी है या ये वाटर प्रूफ है या जब हमें सेल्समेन ये बताना है कि फलां प्लास्टिक का सामान कितने भी जोर से जमीन पर फेंक दें टूटेगा नही और वह सेल्समेन उस प्लास्टिक को फेंककर दिखाता हैं कि वह नही टूटता तब हमें उस सामान पर भरोसा हो जाता है और हम उसे खरीद लेते हैं। यही बात यदि हम अपने व्यक्तित्व या आत्मविश्वास के लिये अपनाये तो हम पर दुनियादारी का असर नही हो सकता। हमें चापलूस प्रूफ बनाना होगा ताकि कोई हमारी चापलूसी का हम पर असर नही डाल सके, हमें भड़काऊ प्रूफ बनना होगा ताकि कोई हमें किसी के प्रति भड़का न सके ।
  हमें अपमान प्रूफ बनाना होगा ताकि किसी के अपमान करने पर हम पर उसके अपमान भरे शब्दों का असर न पड़े। और हम उसका और अपना अहित करने से बच जायें। हमे भय प्रूफ बनना होगा ताकि कोई दृष्ट अपनी कूट रचित बतों से हमें भयग्रस्त न कर दें। ये इस कहानी से माध्यम से समझ सकते हैं
आपने एक कहानी तो सुनी ही होगी जिसमें एक युवा पुत्र और उसका बुजुर्ग पिता अपने गधे के साथ कहीं जा रहें होते हैं। तब एक गांव के लोग उन दोनों को गधे की सवारी करते देख ये कमेंट्स कसते हैं कि देखो इन बाप बेटों को कैसे निर्दयी हैं बेचारे गधे पर दोनों के दोनों बैठ कर गधे की जान लेने पर तुले हुये हैं। तब इस तरह की बातें सुनकर वे दोनों ये तय करते हैं कि पिता गधे की सवारी करेगा और पुत्र साथ में पैदल ही चलेगा। कुछ दूर चलने पर कुछ लोग ये कमेंट करते हैं कि देखो इस पिता को शर्म नही आती बेचारा बेटा पैदल चल रहा है और स्वयं गधे की सवारी के मजे ले रहा है तब ये दोनों तय करते हैं कि पिता भी पुत्र के साथ पैदल ही चलेगा गधे की सवारी कोई नही करेगा। कुछ दूरी पर इसी तरह उन्हें ये कमेंट सुनने को मिलते हैं कि देखों मूर्खों को गधे के होते हुये भी पैदल चल रहें हैं। तब ये दोनों गधे को अपने सर पर लाद कर चलने लगते हैं। कुछ दूरी पर लोग हंस-हंस कर लोट पोट हो जाते हैं और उन्हें पागल करार देते हैं कि ये दुनिया में सबसे बड़े पागल हैं जो गधा इनकी सवारी कर रहा है।
इस कहानी से माध्यम से हमें ये सीख मिलती है कि हमें लोगों की बातों में न आकर अपनी बुद्धि और विवेक से काम करना चाहिये ताकि हम अपने कार्य को अपने अनुसार क्रियांवित कर सकें। जैसे हाथी जब रास्तें से निकलता है तो कुत्ते कुत्ते भौंकते भौंकते कोलाहल मचा देते हैं लेकिन हाथी के शांत मस्तिष्क का इन पर कोई असर नही होता वह मस्त चाल चलते हुये निकल जाता है।
कुछ लोग, लोगो की प्रशंसा भरी बातों में आकर गुब्बारे की तरह फूल जाते हैं। और जब उन्हें सच्चाई का सामना होता है तो जैसे गुब्बारे में पिन करने पर वह फट पड़ता है सारी हवा निकल जाती है वैसे ही इन लोगों का आत्मविश्वास गायब हो जाता है। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो लोगों की भड़काऊ बातों में आकर ऐसे हो जाते हैं जैसे लोहे को चुपके से गर्म कर रख दिया जाता है और जब कोई अनजान आदमी या कोई परिचित उसे छूता है जिसे पता होता है कि ये तो ठंडा ही रहता है तो वह अपने हाथ जला बैठता है अर्थात् वह उसके क्रोध का शिकार हो जाता है। कुछ लोग रातों रात पैसा बनाने का दावा करने वालों के चक्कर में आकर अपना सारा पैसा गंवा बैठते हैं क्योंकि उस समय लोग भ्रमित होकर और लालच में आकर अपने विवेक का उपयोग नही करते केवल दूसरों की बातों को ही सही मानते हैं। और जब पैसा गंवा देते हैं तब पछताते हैं।
हमारे जीवन में कैसी भी परिस्थिति हो हमें पूरी कोशिश करना है कि हमारा मस्तिष्क शांत रहे यदि आपका मस्तिष्क शांत है तो आप कैसी भी बड़ी से बड़ी समस्या का हल ढूंढ लेते हैं। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो एक लम्बे समय तक एक ही समस्या से लड़ रहे होते हैं उनको किसी भी तरह का हल नही सूझता। वो एक ऐसी भूल भूलईया में फंस चुके होते है जिन्हें रास्ता नही सूझता चाहे कितना भी प्रकाश कर रास्ते पर चलें।
यदि हम बाहर के प्रकाश के चक्कर में न पढ़कर अपने अंदर ज्ञान का प्रकाश करने की कोशिश करें। तो जिस भूल भूलाईया में हम फंसे हैं निकल सकते हैं। हमें उस समस्या से निकलने का रास्ता सूझ जाये।
दृढ़ निश्चय एक ऐसी शक्ति है कि जिसने इतिहास के महान वैज्ञानिकों और महान योद्धाओं, एवरेस्ट विजयी लोगों को अपने लक्ष्य को पाने के लिये सोते जागते प्रेरित किया। यदि हम ये निश्चय कर लें कि फलां समस्या से हम छुटकारा पा लेंगे तो हममे एक ऐसी शक्ति जागृत हो जाती है जो हमें चैन से नही रहने देती, जब तक कि हम उस समस्या से छुटकारा नही पा लेते। यदि कोई चोर ये तय कर लें कि फलां चीज चोरी करना है तो वह अपने दिमाग को तिकड़म भिड़ाते भिड़ाते इतना तेज कर लेता है कि उसे वह चोरी बच्चों का खेल लगने लगती है। और वह उस चीज को चोरी कर लेता है भले ही उसे उसको चुराने में कितने ही असफल प्रयास ही क्यो न करने पड़े हों। हम सभी को बचपन से ये सिखाया जाता है कि ततैया से दूर रहो घर में आई है तो कहीं हमें काट न ले, यदि इसने हमें काट लिया तो...आदि। बड़े होने पर भी हम ततैया से सामना होने पर डर कर दूर भागते हैं बहुत ही कम लोग होते हैं जो उसे  भगाने   का साहस करते हैं। आपने ऐसे बच्चे देखें होंगे जो अपने पिता की बात नही मानते लेकिन जिसे वे आदर्श मानते हैं या जिस हीरो  को वे अधिक पसंद करते हैं वैसा ही करते हैं। भले ही वह गलत आदतें उसका अनुसरण करने पर सीखे। जब हम किसी लक्ष्य को पाने के लिये दृढ़ निश्चय करते हैं तो हम ये तय नही करते कि वह अच्छा कार्य है या गलत क्योकि हमें उस लक्ष्य में अपना भला नजर आता है। लक्ष्य को तय करते समय अपनी अंर्तात्मा की आवाज पर अवश्य ध्यान दें अन्यथा वह लक्ष्य आप दृढ निश्चय के बाद भी एक दीर्घकालिक समय में भी नही पा पायेंगे क्योंकि आपकी आत्मशक्ति कहीं न कहीं आपका साथ छोड़ देगी। दृढ़ निश्चय की शक्ति हमें थका देगी बजाय हमें लक्ष्य हासिल कराने के। हमें भी अपने जीवन में एक गुरू की तलाश करनी होगी जिसके मार्ग पर चलकर हम अपने दृढृ निश्यच को अपना आत्मबल प्रदान कर सकें। गुरू जो ज्ञान देते हैं वहीं ज्ञान है जो हमें अपने दृढृ निश्चय की शक्ति से भीड़ से अलग करता है। गुरू के मार्गदर्शन में हम अपनी सोयी हुई शक्तियों से परिचित हो सकते हैं। हम सभी समस्याओं को पार कर जाते हैं और अपना लक्ष्य पा सकते हैं। जैसे समुद्र मंथन होने पर सबसे पहले हलाहल विष निकला था वैसे ही हमें आज से ही अपनी बुरी आदतों को धीरे धीरे कम करने का पहला दृढ़ निश्चय करना होगा। और अंत में जैसे समुद्र मंथन से अमृत निकला था वैसे ही हम अपने बचे हुये जीवन को अमृत प्राप्त करने के लिये अभी से प्रयासरत हो सकते हैं।

याद रखें कि ज्ञान से बडेÞ से बड़े दर्द की दवा पाई जा सकती है जैसे कोई मरीज किसी बिना डाक्टर की क्लिनिक में दर्द से तड़प रहा होता है यदि उसे दवा की जानकारी हो तो वह अपना इलाज स्वयं कर सकता है और दर्द से छुटकारा पा सकता है। इसलिये लगातार ज्ञानवर्धन करते रहें। किसी भी समस्या के कारण लगातार भयग्रस्त रहने, चिंता करते रहने, निराशा करते रहने से अच्छा है उस समस्या का सामना करें और अपने ज्ञान के बल पर उसे दूर करने की कोशिश करें और एक फार्मूला विकसित कर लें कि इस प्रकार की समस्या अगली बार आई तो उसका हल अपने इस फार्मूले से करें। याद रखें कि चिंता का चिंतन करना है उसे किसी अटले हुए रिकार्ड की तरह हमारे दिमाग को जाम नही करने देना है जैसे ये समस्या मेरे साथ ही क्यो होती है, मेरी किस्मत ही खराब है आदि सोचकर। जिससे कि हमें तनाव होता है और लगातार सरदर्द होता रहता है। निराशा में हमेशा आशा की छुपी होती है यदि आप निराश हैं तो अपनी कमियॉं निकालने से अच्छा है अपने अंदर छुपी हुई शक्ति को पहचाने ताकि ये निराशा हमें ले न डूबे। यदि आप बचपन से फोबिया के शिकार हैं जैसे ततैया के काटने से डरना, कॉकरोच से डरना तो उसे अपने अंदर हिम्मत जगाकर और ये तय कर कर कि ये इसके हमले से हम मर तो नही जायेंगे ये तय कर एकबार इसे भगाने की कोशिश करके देखें। कुछ लोग कॉकरोच से डरते हैं लेकिन खँूखार कुत्ते को रोज सुबह घुमाने ले जाते हैं। ये हमारे अंदर बचपन से बैठाया हुआ डर होता है जिससे हमें छुटकारा पाने के लिये स्वयं ही अपनी शक्ति जागृत करना होगी। याद रखें कि हमें स्वयं को नियंत्रित करना है ना कि हमें नियंत्रित करने वाला रिमोट दूसरों के हाथों में देना है यदि कोई हमें पैसे से, सुंदरता से, दिखावे और अपशब्दों से हमारे पथ से भ्रमित करने की कोशिश करें तो हमें अपने दिमाग को ठंडा रखकर कोई प्रतिक्रिया न कर अपने विवेक से काम लेना है। जैसे पापकार्न गर्म तबे पर उछलते हैं हम भी तनाव के कारण अपने जीवन में एकाग्रता खोते जाते हैं हमें इस तनाव रूपी गर्म तबे से उतरना है।
कुछ लोग अपने लिये स्वयं समस्याएँ उत्पन्न करते हैं जैसे कोई एक छोटे से शहर में रहता है, फिर उसे लोगों की तरक्की देख कर ईर्ष्या या लालच होता और नई नई इच्छाएं जन्म लेती है और वह दÞढ़ निश्चय करता है कि मै भी 15-25 हजार रूपये कमा कर दिखाउँगा। फिर वह महानगरों की तरफ भागता है लेकिन वहाँ जाकर उसे ये महसूस होता है कि यहाँ जो वह 15 हजार रू कमा रहा है वह महानगर में रहने खाने के हिसाब से बहुत कम है इस तरह धीरे धीरे वह अपने आपको महानगरों की भीड़ में अकेला पाता है और निराशा, हीन भावना और तनाव पाल लेता है। अपना स्वास्थ्य खराब कर लेता है, व्यसन पाल लेता है। इसी तरह कुछ लोग अधिक सेलरी के लालच के कारण एक नौकरी छोड़ दूसरी नौकरी करते हैं फिर ये उनकी आदत बन जाती है वह किसी भी संस्था में केवल पैसे के लिये टाइमपास करते हैं और नई नौकरी की तलाश करते रहते हैं। कुछ लोग अपनी बचत को अधिक कमाई के चक्कर में भ्रमित होकर शेयर बाजार में झोंक देते हैं और जब जैसे ही सुपड़ा साफ हो जाता है बिन पानी की मछली की तरह तड़पते हैं। इस तरह के बहुत से उदाहरण हैं जो हम अपने जीवन में देखते हैं। बस हमें कोशिश ये करनी है कि हम स्वयं ही अपने जीवन में समस्याओं को आमंत्रित करने से बचें और जो समस्या बिन बुलाये आ जाये उससे भागे नहीं उस समस्या के हल के लिये जागें।


हममे से अधिकतर लोग ये सोचकर समस्याएँ सालों तक सुलझाने में लगे रहते हैं क्योंकि हम सोचते हैं कि हम सही तरीके से उस समस्या का समाधान करने में लगे हुये हैं। लेकिन फिर भी ये पता नही होता कि कब इस समस्या से समाधान पायेंगे। ये ऐसे ही होता है जैसे एक लकड़हारा या लकड़ी काटने वाला कम धार वाली कुल्हाड़ी से पेड़ काट रहा होता है और लगातार काटता रहता है लेकिन वो पेड़ कटने का नाम ही नही लेता। यदि उस लकड़हारे को कोई ऐसा मिल जाये जो ये बता सके कि जिस कुल्हाड़ी से वो पेड़ काट रहा है उसमें धार लगाने की आवश्यकता है। यदि वह इस कुल्हाड़ी से पेड़ काटता रहा तो थक जायेगा और पूरा दिन खराब होगा सो अलग। आपको ध्यान होगा कि बचपन में जब आप साईकिल चलाया करते थे तब आप साईकिल नहीं मोड़ पाते थे, साईकिल पर बैठ नही पाते थे आदि । उस समय हमारे पिताजी जो हमारे मार्गदर्शक या संकटमोचन होते रहें क्योंकि जो हम नही समझ सकते थे हमारे पिता ने हमें गाईड किया या मार्गदर्शन दिया। इसी तरह हमें अपने जीवन में समस्याओं से सही तरीके से छुटकारा पाने के लिये गुरू की आवश्यकता होती है जो हमें आध्यात्मिक ज्ञान के द्वारा जीवन में यम, नियम, ध्यान आदि के माध्यम से परमपिता से जोड़ सकें ताकि हमारी शक्ति में उस परमपिता की शक्ति जुड़ जाये। जिससे मुश्किलें भी मुश्किल में पड़ जायें। कुछ लोग तांत्रिकों या जो आध्यात्म के नाम पर लोगों को नचा रहे हैं या बिजनेस करके लोगों को भ्रमित कर रहे हैं के चक्कर में आ जाते हैं। गुरू की पहचान है जिसकी वाणी में हमें नयापन लगे, जिसकी वाणी हमारी आत्मा को जगा दे। जो हमे अपनी कृपा देने के लिये पैसा न मांगता हो। जिसकी वाणी हमारे कान सुनने के लिये तरसें। जैसे चंद्रगुप्त के गुरू चाणक्य, मीरा के गुरू रविदास, संत कबीर के गुरू रामानंद, अर्जुन के श्रीकृष्ण । हमें अपने गुरू की वाणी को अपने जीवन में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को कम करते हुए ढालना होगा। जैसे एक गुरू ने अपने एक शिष्य को कहा कि यदि तुम मुझसे मिलना चाहते हो तो मेरे आश्रम में आओ जो कि एक पर्वतीय स्थान पर था। और साथ में पाँच भारी पत्थरों के बारे में कहा कि वो अपने साथ लेते आना। जब शिष्य चढ़ाई चढ़ने लगा तो उसे पहले सबसे भारी पत्थर यह सोचकर फेंकना पड़ा कि यदि इसे ले कर चढ़ाई करूंगा तो गुरू तक नही पहँुच पाऊंगा। फिर उसने इसी तरह अन्य तीन पत्थर भी चढ़ाई चढ़ते चढ़ते नीचे फेंक दिये अंत में उसने सबसे हल्का पत्थर भी ये सोच कर फेंक दिया कि गुरू से मिल तो लें बाद में इन पत्थरों को देखेंगे। इसी तरह हमें भी इन पाँच काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार को कम करते हुए अपने जीवन में गुरू के बताये मार्ग पर चल कर गुरू की सद्वाणी को अपने जीवन में लाना होगा। जब हम गुरू के मार्गदर्शन में इन समस्याओं से छुटकारा पा लेंगे तब ही हम अपने जीवन को अपने अनुसार जी सकते हैं जिस अच्छे जीवन की हम बचपन से कल्पना करते आ रहे हैं। हमें अपनी कल्पना को एक सपने के माध्यम से साफ करना होगा कि आखिर हम किस तरह का जीवन जीना चाहते हैं हमें ये सपने में देखना होगा कि हमारा घर कैसा हो, हमारे आस पास कैसा माहौल हो, हमारा पैसा कमाने का साधन क्या होगा, हमे हर वो चीज जो हमारे अच्छे जीवन के लिये हमें प्रभावित करती है को प्लान करना होगा तभी हम अपने सपनों का जीवन जी सकते हैं। हमें अपने जीवन में परिस्थितियाँ सुधारते हुए अपने विचार भी बदलने होंगे, आशंकाएँ कम करनी होगीं, नेगेटिव सोचने की आदत को छोड़ना होगा। इसे हम इस कहानी के माध्यम से समझ सकते हैं -एक दिन नारद जी ने एक मनुष्य को स्वर्ग की यात्रा कराई उसे स्वर्ग में छोड़कर नारद कुछ समय के लिये अपने काम से निकल गये। अब वह व्यक्ति स्वर्ग का भ्रमण करते हुए एक कल्पवृक्ष के नीचे पहँुच गया वहाँ बड़ी सुखद हवा चल रही थी इसलिये उसने कल्पना की कि यदि यहाँ एक चारपाई होती तो मै सो जाता यह कहते ही एक चारपाई वहाँ आ गई और वह उस पर लेट गया। फिर उसने सोचा कि काश कोई सुंदरी मेरे साथ होती इतने में एक अति सुंदर अप्सरा उसके पा आ गई। फिर उसने सोचा कि कहीं मेरी पत्नी मुझे इसके साथ देख लिया तो मेरी झाड़ू से पिटाई कर देगी, दूसरे ही क्षण उसकी पत्नी वहाँ झाडू लेकर प्रकट होगई और उसकी पिटाई करने लगी इतने में वहाँ नारद जी आ गये और उन्होंने उसे बचाया। तब उसने नारद जी से कहा कि आपने तो कहा था कि यहाँ में आनंद अनुभव करूंगा लेकिन इस पत्नी ने मेरा यहाँ भी पीछा नही छोड़ा तब नारद से उसे बताया कि देखो ये जो पेड़ है ये कल्प वृक्ष है भले ही तुम स्वर्ग में हो लेकिन यदि तुम कोई ऐसी कल्पना करोगे जिससे तुम्हे पीड़ा तो वो भी पूरी होगी इसलिये कल्पवृक्ष के नीचे हमेशा अच्छी बातें ही सोचो। इस कहानी का सार ये है कि हमें सदैव सकारात्मक सोचना चाहिये। हमारा मन एक कल्पवृक्ष है जो हम सोचते हैं वहीं हमारे सामने आ जाता है। यदि आप ये सोचेंगे कि इस समस्या का समाधान मै नही कर पाऊंगा तो आप नही कर पायेंगे। इसलिये हमें अपने जीवन में एक मार्गदर्शक यानि गुरू की खोज कर लेनी चाहिये जो हमें सदैव सकारात्मक सोच और सद्कर्मों के लिये प्रवृत्त करता है। जब तक गुरू नही मिल जाते हमें अपनी समस्याओं और तनाव को ऐसे लेना है जैसे हम टायर में हवा भरते हैं लेकिन यदि अधिक मात्रा में भर दी तो टायर फट जायेगा। जैसे एक चिंगारी दीया जला सकती है और विवेक पूर्ण उपयोग नही किये जाने पर पूरा घर जला सकती है।

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