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मंगलवार, 21 फ़रवरी 2012

हम बच्चें पाल रहें हैं या एनिमल ब्रेन

अक्सर लोग रात दिन बच्चों को पढ़ाते हैं जैसे कि कल ही उसे कोई प्रतियोगिता परीक्षा देनी हो स्कूल में एडमिशन के लिये। सुबह उठों दूध पीयों भले ही रात में जो जबरजस्ती टीवी पर विज्ञापन में जो बच्चों के लिये दिखाया गया हो वो सब बच्चा को खिलाया गया हो और वह अभी तक पचा न हो तो भी खाओ। रात दिन हर गलती पर डांट पिटाई। मम्मी को मम्मी नही मॉम कहो पापा को पापा नही पा कहो। अंकल नमस्ते भूल कर हाय हलो गुड मार्निंग आदि कहो। सुबह भले बच्चा लेट सोया हो सुबह एक तमाचा बच्चे के गाल पर और बच्चा सीधे रोता हुआ बाथरूम में,
नाश्ता ठँूसों वेग लो और आधी नींद स्कूल बस या वेन में पूरी करना। स्कूल से बच्चा आया भले ही उसकी थकान चरम पर हो, जाओं मुंह हाथ धो, खाना खाओं, होमवर्क करो बच्चा यदि पढ़ाई में तेज है तो ठीक नही तो तमाचों की बरसात बच्चा रोते हुये पढ़ता है डर डर कर जो बोलो तोते की तरह बीना समझाये बस पढ़ता जाता है। ये ऐसे ही लगता है जैसे किसी जानवर को सर्कस में ट्रेंड किया जाता है। आज कल लोग सोचते हैं कि जैसे जानवरों के बच्चें पैदा होते से ही चलने लगते हैं सब कुछ 1 हफ्ते में सीख जाते हैं मनुष्य के बच्चे भी पैदा होते से ही वैसे ही हो जायें। दूसरे परिवार से कॉम्पटीशन के चक्कर में हर वो चीज जिससे बच्चे की हाइट और हेल्थ बढ़ती हो जो केवल कारखानों में बनती हों टीवी पर दिखाई जाती हों खिलाना। रोटी तो बच्चा बड़े होकर खाना सीख जायेगा, तरह तरह की सब्जियाँ तो वह बड़े होकर भी खाना नही सीख पायेगा। महिलाओं का दिनभर सास बहू वालें सीरियल्स और डरावनी फिल्में बच्चों के साथ देखना। जब परमात्मा ने यह तय कर दिया है कि जानवर का बच्चा लगभग प्रौढ़ पैदा होगा और मनुष्य के बच्चे को प्रौढ़ होने में कम से कम 15 साल लगेंगे। तो फिर हम क्यों हर जगह, हर मेहमान और आसपास के लोगों को ये दिखाना चाहते हैं कि हमारा 4 साल के बच्चें में 8 साल के बच्चों सा नैतिक विकास हो चुका है। कहीं हम उसका आईक्यू बढ़ाने के चक्कर में एनिमल ब्रेन को जागृत तो नही कर रहें और अंजाने में उसका ईक्यू बे्रन को विकसित नही होने दे रहे हैं। जो बाद में बड़ा होने पर अपने स्कूल के टीचर और सहपाठियों पर अपना गुस्सा निकालेगा जिसके उदाहरण हम आये दिन हम समाचार पत्रों और न्यूज चैनल्स पर देखते हैं।
आपने देखा होगा कि विकसित देशों में हर सार्वजनिक स्थानों पर कैमरे लगे होते हैं यदि कोई व्यक्ति किसी की कार जो कि पार्किंग में खड़ी होती है को हिट कर देता है तो वह स्वयं उसकी कार पर एक पर्ची चिपका कर इस पर अपना मोबाईल नं और एड्रेस लिख कर ये संदेश भी लिखता है कि खर्चा मै वहन करूंगा जो भी आपकी गाड़ी को सुधरने पर खर्च होगा उसका। हम सोचते हैं कि ये लोग सज्जन हैं लेकिन ये सज्जनता इसलिये होती है कैमरे में उसकी गलती रिकार्ड हो चुकी है वह इस तरह खर्चा वहन नही करेगा तो उसे कोर्ट में 10 गुना ज्यादा फाइन देना होगा। और आपने ये भी हॉलीवुड फिल्मों देखा होगा कि बहुत से लोग क्रोध में या बदला लेने के लिये किसी की कार पूरे मन से तोड़ता है नष्ट भ्रष्ट करता है और फिर उसपर पर्ची चिपका देता है। ये सब इसलिये होता है क्योंकि इन देशों के नागरिकों को कैमरों से डरा कर सज्जनता सिखाई जाती है ना कि ये स्वयं सज्जन होते हैं और इनकी भड़ास कहीं न कहीं निकलती है जैसे किसी जानवर की जब जानवर पर अत्यधिक प्रेशर दिया जाता है तो वह किसी भी पेड या घर की किसी भी चीज को नष्ट कर ऐसे बैठ जाता है जैसे उसने कुछ किया ही न हो और वह अगली इस तरह की हरकत तब करेगा जब मालिक उस पर नजर न रखें हो क्योंकि वह मालिक से डरता है। ये तो होगया सिक्के का एक पहलू और दूसरा इसके उल्टे होता है
कुछ लोग बच्चे को इस तरह नैतिक विकास की ओर अग्रसर करते है जैसे रात दिन कई महिनों तक एबीसीडी ना पढ़ा कर वह इससे संबंधित कोई एल्फावेटिक पोयम के द्वारा बच्चों को एक हफ्तें में ही बड़े प्यार से बिना डराये, बिना मारपीट के पूरी एबीसीडी याद करा देतें है, बड़ों से कैसी बात करनी है ये सब वो कार्टून एक लिमिट तक दिखा कर जो कि अपनी मातृभूमि और नैतिकज्ञान पर आधारित हो से सिखा देंतें हैं जैसे रोटी खायें, सब्जी खायें, जंक फूड से बीमारी होती है चोरी करना अच्छी बात नही, मम्मी से कैसे बात करनी है, पापा से कैसी बात करनी है। बच्चों को ना मारना केवल डांट कर उन्हें अच्छा बुरा समझाकर। बच्चो की चॉकलेट की मांग को ये कह कर टालना कि लाऐंगें । मंहगी और नुकसान दायक चीजें जो कि बच्चों की आगे जाकर आदत बन जायें से दूर रख कर। बच्चें को स्वयं स्कूल यदि स्कूल घर के कुछ ही दूरी पर है तो पैदल लेकर जाना या स्वयं गाड़ी से छोडकर आना। बच्चे को उसके बर्थडे को याद ना दिलाकर ताकि खर्चों से बच सकें। बच्चों को धार्मिक सीरियल्स दिखाना सत्संग में अपने साथ ले जाना और टीवी पर सुनाना। ताकि बच्चें में ज्ञान के लिये उत्सुकता पैदा हो। बच्चों को कभी कभी मंदिर ले जाकर भगवानो के बारे में बताना ये कौन से भगवान हैं उनका क्या नाम है। आदि बहुत से अहिंसक तरीके  हैं जिनसे हम अपने से भी अच्छें संस्कारवान अपने बच्चों को बना सकते है।

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