आये दिन समाचार पत्रों में पढ़ने को मिलता है फलां ने फलां की बेहरहमी से हत्या की। बच्चे भी आजकल आत्महत्या करने लगे हैं। महिलाएं भी अपने बच्चों सहित आत्महत्या कर रही है। बच्चों का लगातार अपहरण हो रहा है। बच्चियों का रेप। ये कोई किताबी बाते नहीं है आप किसी भी दिन का भोपाल का ईपेपर खौल कर देख लें। हर दूसरे दिन चेन स्नेचिंग होती है और लूट—डकैती की तो कोई गिनीती ही नही।
महिलाएं पतियों को आॅफिस जाने के बाद क्राइम एवं क्राइम के नाट्य रूपांतरण के सीरियल बच्चों सहित देखती हैं। बच्चे भी नेट पर क्राइम से संबंधित गेम खेलते रहते हैं। सभी प्रमुख मूवी चैनल्स पर साउथ इंडियन मारकाट वाली फिल्में चल रही हैं। बिना किसी रोक टोक के।
सेंसर बोर्ड केवल नग्नता को हटा रहा है। आज जरूरत है टीवी सीरियल्स को सेंसर बोर्ड से पास कराने एवं क्राइम वाले गंभीर दृश्यों को हटाने की। यहां कलम घसीटने से कोई मतलब मुझे नजर नही आता। जरूरत है अपने विवेक से अपने घर में न्यूज चैनल्स एवं क्राइम आधारित कार्यक्रमों को ब्लॉक करने की।
9 sept 2015 |
9 sept 15 |
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