जवानी के जलवे दिखाने वालों के लिये शादी विवाह के 1 सप्ताह के कार्यक्रम में गीत संगीत एवं डीजे की सुविधा होती है तो बुजुर्गों के लिये कम से कम 1 दिन किसी संत की सत्संग की वाणी या विडियो नही उपलब्ध कराया जा सकता क्या। ये परिवार के हित में है यदि वे लोग भी जवानी के जलवे दिखाने वालों की तरह कमर हिलाएंगे तो बेवजह का डाक्टर का खर्चा बड़ जायेगा।
एक और बात अधिकतर शादियां अभी गर्मी के मौसम में हो रहीं हैं। जिनमें की भेड़चाल की तरह रिशेप्शन में हैवी तला हुआ खाना उपलब्ध कराया जाता है। जिसमें कि रायता गायब होता है आजकल शहरों में। इस भेड़चाल को छोड़कर क्यो न इस तपते मौसम में फ्रूट प्लेट, फ्रूट जूस, गन्ने के रस का एक स्टॉल् लगया जाय या फिर ठंडाई का स्टॉल। इसमें यदि आप ये सोच रहे हैं कि खर्चा ज्यादा आयेगा तो आप गलत हैं। थोड़ा तामझाम में कमी किजिए हो जायेगा। और आपकी चर्चा भी होगी कि आपने कुछ नया किया। और जो लोग खड़े होकर, हाथ में प्लेट पकड़कर खाने में असुविधा अनुभव करते हैं उनके लिये टेबल लगवानी चाहिये क्योकि कुछ जवान तो आसानी से इम्प्रेशन दिखाने के चक्कर में खा लेते हैं लेकिन जो 35 साल के आसपास के महिला एवं पुरूष होते हैं उन्हेे तो अपने बच्चों को भी साथ में खिलाना होता है। वैसे भी हिन्दू धर्म में पालकी मारकर बैठकर खाने की परंम्परा है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें