किराने की दुकान वाले एमआरपी द्वारा विभिन्न वस्तुओं पर तो कमातें ही हैं एवं विभिन्न कंपनियों की टार्गेट आधारित जो विशेष डिस्काउंट होता है उस पर मलाई मारते हैं। जो कि उनका हक होता है क्योंकि वे भी कमाने ही बैठे हैं लेकिन मै यहां एक और छुपी हुई कमाई की बात यहां बता रहा हूं शायद आप जानते भी हो लेकिन आपने उतनी गंभीरता से न लिया हो।
उधारी में किराना :
- मान लिजिए किसी दुकानदार से आप महिने भर उधारी में किराना खरीदते हैं। और उसका बिल होता है रू. 3000 तो आप अंदाजा लगाएं कि वह इस 3000 की राशि से आपसे कितना प्रतिशत कमा रहा है।
- यदि एक लीटर तेल के पैकेट को वह आपको दे रहा है रू. 85 में और अन्य किसी दुकान पर वही रू. 75 में मिल रहा है तो आप गणित लगाईये कि वह आपसे कितना प्रतिशत कमा रहा है।
- यदि एक बिस्किट का पैकेट वह आपको एमआरपी रेट मान लिजिए रू 10 में ही दे रहा है एवं अन्य किसी सुपर मार्केट में वह रू. 9 में मिल जाता है तो वह आपसे कितने प्रतिशत कमा रहा है
- यदि एक नमक का पैकेट आपको वह रू. 16 में दे रहा है और वही पैकेट अन्य किसी दुकान या सुपर मार्केट में कैश पेमेंट में 14 का मिल रहा है तो वह आपसे कितने प्रतिशत कमा रहा है।
- इसी तरह आप एक 10 किलों या 5 किलों के आटे के पैकेट में भी दाम के अंतर से देख सकते हैं कि आप अपने किराने वालो को महीने भर में कितने रूपये बनाने का मौका दे रहे हैं।
मनशून्य में जन्मा मनुष्य ईश्वरीय खेल में न फसकर मै आत्मा हूँ का ज्ञान अति आवश्यकहै जो भगवद् गीताके अनूसार आत्मयोग सबसे पहले भगवनने सूर्य को दिया जिससे यह सिद्ध हुवा आत्मा कोई भी रुप धारण करके संपूर्ण ब्रह्मांड को चलाने में नीति वचन अनुसार अपना योगदान दे सकता है। अब धर्म अर्थे काम तो ही मोक्ष। शरीर में स्थापित कामके स्थूल स्वरूप और उसके कार्य के बारेमें इस मरूभूमि पर किसिको ज्ञान प्राप्त हो न हो पर आजकल मनुष्य इससे ज्यादा संख्यामे पीडित नजर आता है। जैसे काम बच्चे पैदा करनेकी सोफ्टवेर वाली मनुष्य मशीन हो। जिसमें धर्मका अंग नहीं है पर प्राण है जिसको विस्तार में लिखे तो ऐसा जान पडा घ्यानको राम याने श्वास से उत्पन्न प्राणों मे ही रखकर बोलना चलना जीवन पर्यंतके हरेक कार्य करना। अर्थ अर्थात आत्म रथ ईश्वर रचित ईश्वर अंश जीवने बनाया मनुष्य शरीर और यह जिव अपने निज स्वरूपमे सदा रहे और ईश्वर जिसे चेतन कहा गया और वही ईश्वर चेतन के अमलसे मनुष्य सहजमेंहि सुख राशी प्राप्त करलेता है। वैसे राशीको लोग रुपयोमेही गिनते है और बाकी सबकुछ भूलकर जीवनमे इन्द्रिय सुख मनसुख भाई बनके ही अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते है और भूल जाते है इस ईश्वर अंश जीवके लखचौराशी अवतार धारण कर सकता है। अब मूलाभटका मन शून्य राही पता नही अपने ही अगले जनममे कोनसे अवतारमे आयेगा और सबसे बडे मजेकी बात अगर बौहतसारे शुभ कर्मो से मिला मनुष्य जन्म जो अक्सर बताना पडे के स्वयं सचालित ईश्वर से सब है तो इसका जवाब हरेक शौभाग्यवान मनुष्य खुदही खुदको दे जय श्री राम जय श्री कृष्ण।
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