Mismanagement at Bhopal and Habibganj Railway Station
पोस्ट बहुत छोटी है लेकिन जो हाल देखा लिखने का मन किया क्योंकि शायद सोते हुये प्रशासन को कोई जगा दे।
हबीबगंज और भोपाल रेल्वे स्टेशन पर जो पार्किंग हैं वहाँ कोई भी गाड़ी पार्क कर सकता है चोर या कोई बुरा सोच वाला। कोई पूछने वाला नही। कोई भी व्यक्ति मनचाही गाड़ी पार्किंग स्थल से ले जा सकता है बस उसके पास पार्किंग की पर्ची और गाड़ी की चाबी होना चाहिये। ये जो पार्किंग हैं वहां कम से कम १००० गाडियां प्रतिदिन पार्क की जाती हैं। किसी प्रकार का कोई कम्प्यूटरीकृत कोई सिस्टम नही जबकि आये दिन न्यूज पेपर्स में न्यूज आती रहती है कि जो वाहन चोर गिरोह पकड़े जाते हैं वे अधिकतर रेल्वे स्टेेशन की पार्किंग में ही चोरी की गाडिय़ाँ पार्क करते थे आदि। अब मै एक सुझाव रेल्वे प्रशासन को देना चाहता हंू कि जैसा पार्किंग सिस्टम डीबी मॉल में है जिसमें की कम्प्यूटर पर एक-एक गाड़ी का वाहन नं. दर्ज किया जाता है साथ में सीसीटीवी कैमरे से वाहन लाने वाले का रिकार्ड भी कम्प्यूटर में दर्ज हो जाता है वैसा ही सिस्टम रेल्वे क्यो नही अपनाता। और ये पार्किंग वाले ऐसा लगता है केवल नोट छाप रहे हैं २४ घंटे । और भी अव्यवस्थाएं हैं जैसे भीषण गर्मी में आधा कि.मी. लम्बे प्लेटफार्म पर आप और हम ढंूढ़ते रह जाते हैं कहाँ वाटर कूलर का ठंडा पानी है। और ठंडे पानी की बोटल्स मिलती हैं वे ऊंचे दामों पर बेची जाती है प्लेटफार्म पर जैसे रेल्वे ने उन दुकानदारों को यात्रियों को लूटने का लायसेंस दे रखा हो। इतनी गर्मी में खाने पीने की चीजों की कोई जांच नही की जाती खाद्य विभाग द्वारा रेल्वे स्टेशनों पर जो कि बासे कूसे आलू और मैंदे से बनाया जाता है। टिकट खिड़कियों पर रिटायरमेंट की उम्र बढ़ाये जाने का परिणाम नजर आता है बुर्जग महिलायें और पुरूष रेल्वे कर्मचारी यात्रियों की अनसुनी करते हुये बेहद सुस्त चाल से कम्प्यूटर चलाते हैं उनकी नजर केवल पहचान वाले टिकट खरीदार पर होती है। भले ही यात्री चिल्लाते रहें कि ट्रेन छूट जायेगी या यात्री बताये कि वह अपंग की श्रेणी में आता है या यात्री कहे की उसके पास चेंज नही हैं तो भी उन पर कोई फर्क नही पड़ता।
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