पिछले एक सप्ताह से मेरी वाइक बड़ी परेशान कर रही थी। बार बार बंद हो रही थी तो मैने सोचा कि शायद कार्बोरेटर में पानी या कचरा आ गया होगा तो मैने उसे ड्रेन कर दिया। ड्रेन मतलब जो कार्बोरेटर के नीचे वाला स्क्रू होता है जिससे कि एक लटका हुआ खुला पाइप जुड़ा रहता है उसे खोला तो जो अवशिष्ट युक्त पेट्रोल कार्बोरेटर की तली में जमा होता है निकल जाता है। लेकिन इससे समस्या का अंत नही हुआ फिर मैने कार्बोरेटर में जो रेस बढ़ाने का स्कू्र होता है उससे रेस बढ़ाई ताकि गाड़ी बार बार बंद न हो लेकिन ये तरकीब भी ज्यादा काम न आई। अब तो गाड़ी का इंजन आग की तरह गर्म होने लगा और गाड़ी बार बार बंद। तब मैने एमपी नगर में एक मैकेनिक को दिखाया तो उसने कहा कि गाड़ी में इंजन आॅयल डालना पड़ेगा मैने सोचा कि चलो डलवा लेते हैं। लेकिन इंजन आॅयल डालने के बाद भी दूसरे दिन गाड़ी अत्यधिक पेट्रोल खा रही थी और वही बार बार बंद। इस बार मुझे 2 कि.मी. गाड़ी धकाकर बीएचईएल एरिये में एक मैकेनिक को दिखानी पड़ी उसने कहा कि कलच पलेटें जा रही हैं इसलिये उसने कलच बायर लूज कर दिया अब तो गाड़ी कुछ दूर चले और जैसे ही कहीं ट्रेफिक में गेयर चेंज करों बंद। फिर करते रहो स्टार्ट, और पेट्रोल तो गाड़ी एक तरह से पी रही थी मात्र 6 कि.मी. गाडी चलाने पर 30 रू. का पेट्रोल स्वाहा हो रहा था। इसके बाद मैने ओर 2 मैकेनिकों को दिखाया लेकिन कुछ समय बाद समस्या वहीं की वहीं। फिर किसी तरह गुरूवार याने 19 जुलाई 2012 को मै अपने आॅफिस से जो कि जोन 1 एमपीनगर में है से जोन 2 एमपीनगर स्थित पेट्रोल पम्प तक गाड़ी धकाकर ले गया। मैने सोचा कि कौन जरा से पेट्रोल के लिये दूसरों के आगे हाथ फैलाये। अब तो ऐसा लगे जैसे मै एक कमजोर और कुपोषित की श्रेणी में हँू जो कि एक चढ़ाई पर गाड़ी को धकाने में ही पसीने से तरबतर हो गया। खैर किसी तरह मै रात के 8 बजे किसी तरह गाड़ी को रूकते रूकाते बीएचईएल बरखेड़ा मार्केट ले गया लेकिन वहाँ गुरूवार को सभी दुकाने बंद रहती हैं मैकेनिक की भी। फिर वहाँ से पिपलानी मार्केट गया लेकिन वहाँ गुरूवार का बाजार या हाट लगता है इसलिये मैकेनिक महोदय के भाव बढ़े हुये थे सो वहीं एक दूसरे मैकेनिक के पास गया तो उसने गाड़ी को चेक करने के बाद बताया कि इसका इंजन खुलेगा पिस्टन डलेगा और पता नहीं क्या डलेगा कहा। और उसने टोटल खर्चा बताया 1800 रू. मैने कहा कि यार ये तो तुमने अंधी मचा रखी है जरा सी प्रोब्लम को ठीक करने के इतने खर्चे बता रहे हो तो वह अपनी दलिलें देने लगा कि करवा लो नही तो इंजन बैठ जायेगा, एवरेज की गारंटी मेरी आदि। मैने उससे कहा कि रहने दे भाई।
फिर मै किसी तरह रात 9 बजे के लगभग घर पहँुचा वहाँ कॉलोनी के पास वाला मैकेनिक भी आज गुरूवार को दुकान बंद कर आराम फरमा रहा था। तब मैने सोचा सुबह देखते हैं। फिर सुबह जल्दी उठकर आॅफिस के लिये निकला 1 घंटे पहले कि गाड़ी सुधरवाने में न जाने कितना टाइम खपे। तो कॉलोनी के मैकेनिक को गाड़ी दिखाने का मन नही करा पता नही कितना खर्च बताये और स्पेयर पार्टस हों के न हों। फिर मैने रास्ते में अवधपुरी स्टेट बैंक के पास एक मैकेनिक की दुकान पर गाड़ी ले जाकर खड़ी कर दी। मैने देखा कि वह दुकान का मालिक कुछ पढ़ा लिखा लग रहा था उसने अपनी दुकान में कम्प्यूटर के पुराने मॉनीटर को टीवी में कन्वर्टकर लगा रखा था। मुझे लगा कि यही सही समस्या का समाधान बता सकता है उसने अपना हाथ का काम निपटाने के बाद मेरी गाड़ी चेक की और एक पेचकस से कार्बोरेटर में एक लम्बी सेटिंग की ओर टेस्ट राइड ली। फिर मुझ गाड़ी देते हुये कहा कि भैय्या अब चला कर देखना बंद नही होगी, पेट्रोल भी नही खायेगी, हाँ एक बात याद रखना कि गाड़ी का कार्बोरेटर की सेंटिग को मत छेड़ना। मुझे उस पर भरोसा तो था लेकिन फिर भी मैने कहा कि कुछ तो खोला खाली कर देख लेते तो अच्छा होता, मुझे आॅफिस जाना है यदि रास्ते मे फिर बंद हो गई तो। तब उससे अश्वासन दिया और कहा कि नही होगी। और हुआ भी वही जो गाड़ी पूरे सप्ताह भर से 4 मैकेनिको से ठीक नही हुई इन महोदय ने मात्र 10 मिनट में अपने अनुभव के पेचकस से बिना किसी चार्ज या फीस के समस्या का समाधान कर दिया।
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