नये भोपाल के अधिकतर स्कूलों ने अपनी फीस दोगुनी कर दी है, एनुअल फीस या री-एडमिशन के नाम पर 2500-3000 रू तक वसूले जा रहे हैं, कॉलोनियों में स्कूल ही नही हैं। बिल्डरों ने कॉलोनियाँ तो बना दी हैं लेकिन स्कूल कौन बनाएगा, कॉलोनियों में स्कूल के लिये जगह भी नही छोड़ी। क्या हम अपने 4 साल के बच्चों को 6 कि.मी. बस से पढ़ने भेजें या अपना काम धंधा छोड़ स्कूलों में अपडाउन करें। सरकारी स्कूल तो कॉलोनियों के आस पास ढंूढने से भी नही मिलते। आंगनबाड़ियों तो केवल अब गांव की ही शान रह गई हैं। नये भोपाल में हिन्दी मीडियम स्कूल कौन खुलवायेगा? जो ट्रस्टों द्वारा संचालित स्कूल्स हैं क्या उनके द्वारा दान में अर्जित करोड़ों रूपये स्वीस बैंक में जाता है। भीख मांगने का लायसेंस लो ना यार, स्कूल खोलने का क्यो ले लिया। क्यों अप्रत्यक्ष रूप से अभिभावकों को लूट रहे हो? मध्ययवर्गीय परिवारों के पास गरीबी रेखा का राशन कार्ड तो है नही कैसे बडेÞ स्कूलों में एडमिशन का लाभ लें? शासन द्वारा जो कोर्स शासकीय स्कूल में मान्य है प्राइवेट स्कूल्स में क्यों नही? क्यों ये प्राइवेट स्कूल्स अपनी कमाई कर रहे हैं घटिया पब्लिकेशन की बुक्स बिक्री के लिये बाध्य कर। एसबीआई क्यो हर साल रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित स्कूल विवेकानंद ज्ञानपीठ, अवधपुरी, भेल, भोपाल को लाखों रूपये दान देता है? जबकि ये स्कूल के बच्चों को फीस में 1 रू. की भी रियायत नही देता, लूट मचा रखी है। इस स्कूल का बस नही चले नही तो ये बच्चों के चेहरे पर भी स्कूल का लोगो अनिवार्य कर दे। हमारा बच्चा किसी युद्ध में लड़ने नही जा रहा, पढ़ने जा रहा है जरूरी नही कि हर चीज पर स्कूल का लोगो लगा हो।
17 june 2013 |
پروتز چانه
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