Issuing transfer certificate from the school is major problem.
मै इस माह अपनी बच्ची को रामकृष्ण मिशन द्वारा संचालित एक ब्रांडेड स्कूल से निकालकर एक सस्ते और जहाँ पढ़ाई होती है लुटाई नही होती डालना चाहता हँू। लेकिन जब मेरी पत्नि उस ब्रांडेड स्कूल में टीसी के लिये गई तो स्कूल प्रबंधन ने पहले तो कहा कि इस साल से हमने और अच्छे टीचर रख लिये हैं अब पढ़ाई अच्छी होगी लेकिन मैने तो तय कर लिया है अपनी बच्ची को इस महल जैसे स्कूल से छुटकारा दिलाने के लिये क्योकि इन जैसे महल टाइप स्कूलों में ना तो पढ़ाई होती है ना ही बच्चों को प्रारंभिक शिक्षा बेहतर मिल पाती है बच्चा नर्सरी से लेकर दूसरी क्लास तक ये नही सिख पाता कि हिन्दी के बाराखड़ी या इंग्लिश में वर्व या टेन्स क्या होते हैं ना ही गुणा भाग। और कोर्स की किताबें इस अनुसार या ऐसी होती हैं जैसे हमारा बच्चा हिन्दी या इंग्लिश पढ़ने, लिखने और समझने में एक एक्पर्ट है। इस जैसे स्कूल हमारे बच्चों को एक मैसेन्जर या संदेश वाहक बना लेते हैं, हमारा बच्चा हर सप्ताह एक संदेश लेकर आता है कि मेडम ने फलां काम के लिये इतने पैसे या फलां कार्यक्रम के लिये फलां टाइप की ड्रेस या स्वतंत्रता दिवस के लिये स्कूल कंगाल हो चुका है झंडा फहराने के लिये 50रू चाहिये और पता नही क्या-क्या ये भिखमांगे लोग संदेश द्वारा मांगते रहते हैं। जबकि करोडों रू दान में अर्जित करते हैं। केवल फॉरमेलिटी या ये कहें कि केवल खर्चा-खर्चा और खर्चा। और यदि आप टीसी निकलवाने के लिये जून या जुलाई में एप्लीकेशन देते हैं तो कहा जाता है कि अपै्रल में ही टीसी निकलवानी थी आपको अब यदि आपको टीसी चाहिये तो एनुअल चार्जेस 1500-2000 रू. तो देने ही होंगे अन्यथा टीसी नही मिलेगी।
अब यदि दूसरे स्कूल में जाकर हम ये बताएँ कि फलां स्कूल वाले टीसी नही दे रहे तो वह अपने हाथ खड़े कर देते हैं कि बिना टीसी के हम एडमिशन या प्रवेश नही दे सकते। अभिभावक इस समस्या से इतने एरिटेट या चिढ़ने लगते हैं कि वे उसी पहले वाले स्कूल में अपने बच्चों एक शैक्षणिक वर्ष बर्बाद कर देते हैं।
जब हमारी सरकार या प्रशासन को मालूम है कि अभिभावक या बच्चा कक्षा 8 तक या 10 तक किसी भी हालत में दो स्कूल्स में नही पढ़ सकता तो फिर क्यो दूसरे स्कूल में प्रवेश के लिये टीसी कि अनिवार्यता लागू की गई है जबकि बच्चे की मार्कसीट भी तो उसी स्कूल की होती है, टीसी कोई करेंसी पेपर पर तो प्रिंट होती नही जो कोई डुप्लीकेट नही बना सकता। हमारे भोपाल शहर की इस समस्या के कारण मैने एक सबसे बड़ी खामी महसूस की है कि यदि आप किसी स्कूल से पीड़ित हैं तो केवल एक डीईओ आॅफिस (DEO Office Bhopal or DEO, BHOPAL Email ; deobho-mp@nic.in ) है शिकायत करने के लिये वहां प्रतिदिन सैकड़ों लोग इसी समस्याा को लेकर आते हैं यदि डीईओ को समस्या बताओं तो केवल एक फॉरमेलिटी वाला जवाब कि शिकायत लिख कर दे दें। शिक्षा मंत्री महोदया का ईमेल पूरे नेट पर कहीं नहीं, जो इनके करीबी आॅफिसर हैं वे फोन पर या मोबाईल पर समस्या सुनते ही कहते हैं मिलकर बताना और मिलना ऐसे है जैसे प्रधानमंत्री से मिलना हो। इन ट्रस्टों द्वारा संचालित स्कूलों की पकड़ भी बहुत होती है राजनीति या ब्यूरोके्रट्स में बड़ी टेड़ी खीर है इनके खिलाफ शिकायत को अंजाम तक पहुंचाना।
भोपाल कलेक्टर महोदय ने 1-2 साल पहले सभी स्कूलों को यह निर्देश दिया था कि कोई भी स्कूल एक ही दुकान से अभिभावकों को किताबें लेने पर मजबूर न करें लेकिन इस निर्देश की लगभग सभी प्राइवेट स्कूल्स धज्जियाँ उड़ा रहें हैं। केजी 1 से लेकर कक्षा दूसरी तक की किताबें यदि यकीन न हो तो पता करें ये स्कूल्स 1100-1300 रू. तक में अपनी कमीशन वाली दुकानों से लेने को मजबूर कर रहे हैं। ये एक ट्रिक अपनाते हैं ऐसी दुकान का पता देते हैं जो स्कूल्स से काफी दूर होती हैं भोपाल के दूसरे कोने में। यदि कोई आधा कोर्स लेना चाहता है तो ये मना कर देते हैं। और जब इनके पास कोई किताब कम होती है तो कहते हैं अभी इतनी ले जाओं बाद में ले जाना। लुटाई जारी है। हर साल बच्चे की फीस के साथ एनुअल चार्जेस के नाम पर 1500-2000 रू तक वसूलते हैं बताते भी नही कि किस बात के वसूल रहे हैं।
4 july'12 bhaskar bhopal |
6 july12 bhaskar bhopal |
24 JULY12 BHASKAR BHOPAL right click and open in new window or tab for ZOOM |
17 june 2013 |
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें