हमारे धर्म में 33 करोड़ देवी देवताओं से डर कर हम पता नही कैसे कैसे डर, प्रकोप और अंधविश्वास को अपने अंदर पाल लेते हैं गीता में भगवान ने कहा है कि जो मेरी भक्ति करता है मै हमेशा ही उसकी रक्षा करता हँू तो फिर हम क्यो हर शनिवार तेल की वॉटल लेकर शनि महाराज के मंदिर की ओर भागते हैं जितना हम उस शनि मंदिर में खर्च करते हैं उतने में हर शनिवार किसी भूखे को या किसी बच्चे को खुश किया जा सकता है। अगर हमारी राशि में साढ़े साति चल रही है तो वह तो असर करेगी ही तो फिर क्यो हम शनि को रिश्वत देते हैं कि वो अपना कर्म हम पर करने में बेइमानी करें। शनि मंदिर में आपने देखा होगा कि रास्ते में कितना तेल पड़ा रहता है लोग फिसल कर गिर जाते हैं इस गलती की सजा किसे मिलेगी उस भक्त को जिसने ये तेल चढ़ाया या उसे जिसे ये तेल चढ़ाया गया उसने फर्श पर फैला दिया। इस पूरे पैरे के माध्यम से मै ये कहना चाहता हँू कि कब तक हम पूरी जिन्दगी डर डर कर देवी देवताओं को खुश करने के लिये टोंने टोटके और तंत्रिकों के चक्कर में अपना पैसा और समय बर्बाद करेंगे। जबकि होना वही है जो भाग्य में लिखा है। रावण ने तो शनि को बंधक बना लिया फिर भी उसे बुरे कर्मों की सजा आखिर भोगनी ही पड़ी। हनुमान जी ने तो शनि का कुछ भी नही बिगाड़ा था फिर क्यो शनि ने उन्हें सताने की असफल कोशिश की। कब तक हम ज्योतिषियों की बातों में आकर अपना भविष्य बर्बाद करेंगें कर्महीन होने की ओर प्रवृत्त होंगे। कंस को तो आकाशवाणी के माध्यम से अपना भविष्य पता पड़ गया था उसने पूरे जतन किये लेकिन वह भी होनी को नही टाल सका क्या ये उदारहरण हमारे लिये काफी नही। कुछ लोग पूरी जिन्दगी डर डर कर जीते हैं वो भी गरीबी में सारी उम्र देवी देवताओं की पूजा अर्चना करते हैं मिलता क्या है गरीब पैदा होते हैं गरीब ही इस दुनिया से चले जाते हैं। जाते जाते अपने बच्चों को भी वहीं डर और अंधविश्वास देकर चले जाते हैं ये भी नही बताते कि इन देवी देवताओं ने पूरी उम्र पूजने के बाद भी उन्हें गरीब ही रखा। अगर सबकुछ ये देवी देवता ही कर सकते तो भगवान दुष्टों का नाश करने के लिये अवतार क्यो लेते। महाभारत में भी जब शनि देव गोकुल में बाल कृष्ण के दर्शन के लिये गये थे तो भी भगवान की उन्हें झलक तक देखने को नही मिली जब शनिदेव ने कोकिलावन में भगवान के लिये तप किया तब जाकर भगवान ने कोयल के रूप में शनिदेव को दर्शन दिये। इस प्रसंग से हम ये समझ सकते हैं कि जब देवी देवता भगवान के लिये तप करते हैं तो हम क्यो इन देवताओं को प्रसन्न करने के चक्कर में परमात्मा को छोड़ इनको प्रसन्न करने के लिये जतन करें भगवान को भी पता था कि शनि देव जिस पर अपनी दृष्टि डालते हैं उसको कष्ट झेलने पड़ते हैं इसलिये उन्होंने कोयल के रूप में उन्हें दर्शन दिये क्यों कि कोई भी देवता अपनी प्रवृत्ति किसी के लिये चेंज नही करता चाहे वह भगवान हो या इंसान। शनि देव ने तो भगवान शिव को भी नही छोड़ा उन्हे भी एक दिन हाथी के रूप में वन में बिताना पड़ा फिर हम कैसे शनिदेव को तेल चढ़ा कर ये सोचे की हमें ये छोड़ देंगे। मै ये नही कहना चाहता हूँ कि हम देवी देवताओं की पूजा करना छोड़ दे पूजें लेकिन डर कर नही श्रद्धा से पूजें। यदि हम रोज गऊ माता को पूजें तो कैसा रहेगा क्योकि सभी देवी देवतओं का बास गं्रथों में बताया गया है कि गऊमाता में होता है। लॉ आॅफ एट्रेक्शन का नियम है कि जैसा हम सोचते हैं वैसा ही हमारे साथ होता है अगर हम प्रतिदिन डर डर कर अपशकुन वाली बातें ही सोचेंगें तो वे तो होनी ही हैं यदि हम निर्भीक होकर अपने लिये अच्छा अच्छा सोचें तो शायद हमारे साथ अच्छा हो हमारी लाईफ इस कलयुग में कुछ शुकुन भरी हो। हम टीवी सीरियल्स में देखते हैं कि किसी बहु या सास के हाथ से पूजा का दीया बुझ जाता है या थाली हाथ से गिर जाती है तो अपशकुन होनें लगते हैं उनकी लाईफ में । यदि हम अपनी अक्ल से पर्दा उठायें तो ये सीरियल्स हमारे मनोरंजन के लिये दिखाये जाते हैं लेकिन हम इन सीरियल्स को देख कर अपने दिल में रंज पाल लेते हैं। यदि हम अभी जाग जायें तो हम अपने बच्चों के दिमाग में एक गलत प्रोग्राम डालने से बच सकते हैं जिस प्रोग्राम से हमारा बच्चा भी डर डर कर अपनी सफलता के लिये बड़ा होने पर किसी पर निर्भर न रहे।
हम जब शनिवार को सड़कों पर स्टील की बाल्टी में जो शनि महाराज होतें है को पैसे चढ़ाते हैं तो इस तरह हम अपने अंधविश्वास के माध्यम से उन निकम्मे लोगों को बिना मेहनत के धन कमाने का मौका देते हैं जो पूरे सप्ताह में एक दिन शनि महाराज को बाल्टी में लेकर ढेर सारा पैसा, हफ्तेभर का खर्चा पूरा कर लेते हैं । यदि इन्ही पैसों से हम अपने बच्चे को चॉकलेट खरीद कर दें या किसी गरीब बच्चें को कुछ खाने की सामग्री खरीद दें तो हमें पुण्य मिले। क्यों हम पढ़े लिखे मूर्ख अपनी नजरों में न सही दूसरों की नजरों में बनें। यदि हम गलत कार्य न करें और अपने भगवान पर भरोसा करें तो हम अंधविश्वास के डर को दूर कर सकते हैं।
यदि भक्त के पास सच्ची श्रद्धा हो तो पत्थर से भी भगवान दर्शन देने के लिये आ जाते हैं भगवान के नाम से ही पत्थर तैरने लगते हैं। रामायण में जब रामजी की वानर सेना राम लिखे पत्थर समुद्र में डाल कर सेतु बना रही थी तो ये समाचार लंकावासी सुन कर भयग्रस्त हो गये थे तब रावण ने उनका भय दूर करने के लिये अपनी प्रजा को भी समुद्र किनारे लेजाकर ये दिखाया कि यदि वह पत्थर पर रावण लिख कर भी पानी में डालता है तो वह भी तैरेगा और हुआ भी वही रावण लिखा पत्थर भी पानी में तैरने लगा। जिससे उसकी प्रजा भयमुक्त हुई। लेकिन जब रावण अपने महल में आया तो उसकी पत्नी मंदोदरी ने उससे पूछा कि स्वामी ये तो मुझे और आपको पता है कि पत्थर पर रावण लिखने से वह नही तैर सकता तो क्या आपने अपनी माया से ऐसा किया तब रावण ने कहा कि ये मै भी जानता हँू कि रावण के नाम से पत्थर नही तैर सकता इसलिये मै जब पत्थर पर रावण लिख कर पत्थर पानी में फेंक रहा था तब मैने पत्थर से धीरे से कहा कि कसम है तुझे राम की यदि तू डूबा तो। इससे हम से समझ सकते हैं कि भगवान के लिये हमारे अंत:करण में यदि थोड़ी सी भी श्रद्धा हो तो भगवान की कृपा होती है लेकिन केवल श्रद्धा से पूजने पर ना कि डर कर भगवान को पूजने पर।
शायद इस कहानी से हमें कुछ सीख मिले
एक गांव में एक किसान रहता था एक बार उसके गांव में एक विद्वान ज्योतिषी पधारे उस किसान ने भी अपना भविष्य जानने के उद्देश्य से उनके दर्शन किये और अपने भविष्य की जिज्ञासा जाहिर कि तब उस ज्योतिषी ने उसे बताया कि उसकी राशि पर शनि की साढ़ेसाती आने ही वाली है और वह बर्बाद हो जायेगा। तब उस ज्योतिषी ने बचने के लिये ज्योतिषी से उपाय पूछा तब ज्योतिषी ने कहा कि शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करे।
तब वह किसान चिंताग्रस्त रहने लगा और हर शनिवार को शनिदेव के मंदिर बड़ी चिंता फिकर से पहुंच जाता। तेल तो वह हर शनिवार खरीद नही सकता था इसलिये वह हर शनिवार काली उड़द दाल के दाने और गुड लेकर जाता और शनि महाराज की प्रतिमा पर चढाता। लेकिन डर हमेशा उसके मन में बना रहता कहीं कुछ बुरा मेरी लाईफ में नही हो जाये। एक दिन वह किसान शनिवार के दिन अपने निश्चित समय प्रात: शनि मंदिर नही जा सका तो उसने सोचा कि शाम को चला जायेगा और दिन भर वह अपने कार्य करते समय यही सोचता रहा कि आज कुछ बुरा न हो जाये। शाम को भी वही इसी चिंता में ग्रस्त होकर घर की ओर चलने लगा रास्ते में शनि मंदिर का रास्ता छोड़ सीधे अपने घर आ गया दुर्भाग्य से उसे अपने घर में रात में किसी चीज से हाथ में चोट लग गई और उसके दर्द से वह रातभर यही सोचता रहा कि ये जरूर आज शनिदेव का कोप मिला है। अब वह किसान पूरे घर के कार्य छोड़ हर शनिवार मंदिर जाने लगा एक दिन बरसात में उसके गांव में बहुत तेज वारिस हुई उस दिन लोग अपने काम धंधे छोडकर घर से बाहर नही निकले लेकिन वह किसान शनि के प्रकोप के डर से अपने घर से निकला और बडी कठनाई से मंदिर पहुंचा। लेकिन उसका डर हमेशा चिंता बन कर उसे रातदिन खाता रहा एक दिन ऐसा आया कि काम धंधे पर ध्यान न दे पाने के कारण उसे अपने परिवार के भरण पोषण के लिये कर्ज लेकर जीवनयापन करना पड़ा इस तरह उसका कर्ज बढ़ता गया और चिंता चिता के समान उसे रातदिन जलाने लगी। लेकिन फिर भी वह उस चिंता ग्रस्त और किसी अनजान डर के कारण शनि मंदिर जाता रहा। एक दिन ऐसा आया कि उसे अपने गांव में ही जंगल में झोपड़ी बना कर अपने गांव में ही मजदूरी करना पड़ रही थी लेकिन अब वह एकदम चिंता मुक्त रहने लगा क्योकि उसके परिवार में उसकी कोई अहमियत नही बची क्योकि पत्नी और बच्चे अपने लिये स्वयं मजदूरी कर अपना भरण पोषण करने लगे। और वह भी सोचने लगा कि अब किस चीज के बर्बाद हो जाने के डर से मै जिऊं सब तो बर्बाद हो गया अब वह शनिमंदिर भी नही जाता था क्योकि वह शनिमंदिर को देख कर भय से ग्रस्त नही होता था केवल अपनी मूर्खता पर हंसता था कि जो होना था हो ही गया। इस देवता ने क्या कर लिया मुझे इतनी पूजा करने के बाद भी बर्बाद कर दिया। एक दिन वही ज्योतिषी दुबारा फिर उसी गांव में आये इस बार ये दूर से ही लोगों को उनसे मिलते हुये देखता रहा उसमें उस गांव का जमींदार भी था जो कि सुखी सम्पन्न था। और अगले दिन वही जमींदार उसे शनि मंदिर में दिखाई दिया वह किसान उसे देख कर मुस्कुरा दिया लेकिन उसने उस जमीदार को कुछ नही वताया क्योकि उसकी अंर्तात्मा ने उसे रोक दिया कि उसे एक दिन स्वयं ही सबकुछ पता पड़ जायेगा। किसान ने दूर से ही शनिमहाराज को हाथजोड़ कर धन्यवाद दिया कि आपने मेरी आंखो से भ्रम का पर्दा हटा दिया, मुझ स्वर्ण(सोने) की अशुद्धियाँ जीवन की विपत्तियों, ठोकर और कठिनाई रूपी अग्नि में भस्म कर दीं।
इस कहानी से और हमारे जीवन में अधिकतर लोगों को शनि देव के प्रभाव में लम्बें अंतराल तक कठिनाईयाँ,विपत्तियाँ और आर्थिक परेशानियाँ एक अच्छे सतगुणी जीवन को जीने की कला सिखाकर ही जाती हैं। ये सब भुगतने पर हमें अपने जीवन में ये पता पड़ जाता है कि कौन है जिसे हम पराया समझते थे वह अपनों से भी कहीं ज्यादा मददगार और जो अपने थे परायों से भी ज्यादा पराये निकले, कौन सा मित्र सच्चा है और कौन सा मित्र केवल अपना मतलब पूर्ण करने के लिये ही हमसे मित्रता रखता है। हमने अपने अहंकार के कारण बीते जीवन में कितने दुख लोगों को दिये और हमें भी उसी तरह उनकी हाय के रूप में अपने ही अहंकार के कारण वैसा ही दुख मिला। हमें पैसा बिना सोचे समझे,बिना अपने परिवार के विचार विमर्श के हर कहीं नही व्यय करना चाहिये, हमें उस विपत्ति के समय एक एक पैसा की अपने जीवन को जीने में अहमियत समझ आती है।
हम जब शनिवार को सड़कों पर स्टील की बाल्टी में जो शनि महाराज होतें है को पैसे चढ़ाते हैं तो इस तरह हम अपने अंधविश्वास के माध्यम से उन निकम्मे लोगों को बिना मेहनत के धन कमाने का मौका देते हैं जो पूरे सप्ताह में एक दिन शनि महाराज को बाल्टी में लेकर ढेर सारा पैसा, हफ्तेभर का खर्चा पूरा कर लेते हैं । यदि इन्ही पैसों से हम अपने बच्चे को चॉकलेट खरीद कर दें या किसी गरीब बच्चें को कुछ खाने की सामग्री खरीद दें तो हमें पुण्य मिले। क्यों हम पढ़े लिखे मूर्ख अपनी नजरों में न सही दूसरों की नजरों में बनें। यदि हम गलत कार्य न करें और अपने भगवान पर भरोसा करें तो हम अंधविश्वास के डर को दूर कर सकते हैं।
यदि भक्त के पास सच्ची श्रद्धा हो तो पत्थर से भी भगवान दर्शन देने के लिये आ जाते हैं भगवान के नाम से ही पत्थर तैरने लगते हैं। रामायण में जब रामजी की वानर सेना राम लिखे पत्थर समुद्र में डाल कर सेतु बना रही थी तो ये समाचार लंकावासी सुन कर भयग्रस्त हो गये थे तब रावण ने उनका भय दूर करने के लिये अपनी प्रजा को भी समुद्र किनारे लेजाकर ये दिखाया कि यदि वह पत्थर पर रावण लिख कर भी पानी में डालता है तो वह भी तैरेगा और हुआ भी वही रावण लिखा पत्थर भी पानी में तैरने लगा। जिससे उसकी प्रजा भयमुक्त हुई। लेकिन जब रावण अपने महल में आया तो उसकी पत्नी मंदोदरी ने उससे पूछा कि स्वामी ये तो मुझे और आपको पता है कि पत्थर पर रावण लिखने से वह नही तैर सकता तो क्या आपने अपनी माया से ऐसा किया तब रावण ने कहा कि ये मै भी जानता हँू कि रावण के नाम से पत्थर नही तैर सकता इसलिये मै जब पत्थर पर रावण लिख कर पत्थर पानी में फेंक रहा था तब मैने पत्थर से धीरे से कहा कि कसम है तुझे राम की यदि तू डूबा तो। इससे हम से समझ सकते हैं कि भगवान के लिये हमारे अंत:करण में यदि थोड़ी सी भी श्रद्धा हो तो भगवान की कृपा होती है लेकिन केवल श्रद्धा से पूजने पर ना कि डर कर भगवान को पूजने पर।
शायद इस कहानी से हमें कुछ सीख मिले
एक गांव में एक किसान रहता था एक बार उसके गांव में एक विद्वान ज्योतिषी पधारे उस किसान ने भी अपना भविष्य जानने के उद्देश्य से उनके दर्शन किये और अपने भविष्य की जिज्ञासा जाहिर कि तब उस ज्योतिषी ने उसे बताया कि उसकी राशि पर शनि की साढ़ेसाती आने ही वाली है और वह बर्बाद हो जायेगा। तब उस ज्योतिषी ने बचने के लिये ज्योतिषी से उपाय पूछा तब ज्योतिषी ने कहा कि शनिवार के दिन शनिदेव की पूजा करे।
तब वह किसान चिंताग्रस्त रहने लगा और हर शनिवार को शनिदेव के मंदिर बड़ी चिंता फिकर से पहुंच जाता। तेल तो वह हर शनिवार खरीद नही सकता था इसलिये वह हर शनिवार काली उड़द दाल के दाने और गुड लेकर जाता और शनि महाराज की प्रतिमा पर चढाता। लेकिन डर हमेशा उसके मन में बना रहता कहीं कुछ बुरा मेरी लाईफ में नही हो जाये। एक दिन वह किसान शनिवार के दिन अपने निश्चित समय प्रात: शनि मंदिर नही जा सका तो उसने सोचा कि शाम को चला जायेगा और दिन भर वह अपने कार्य करते समय यही सोचता रहा कि आज कुछ बुरा न हो जाये। शाम को भी वही इसी चिंता में ग्रस्त होकर घर की ओर चलने लगा रास्ते में शनि मंदिर का रास्ता छोड़ सीधे अपने घर आ गया दुर्भाग्य से उसे अपने घर में रात में किसी चीज से हाथ में चोट लग गई और उसके दर्द से वह रातभर यही सोचता रहा कि ये जरूर आज शनिदेव का कोप मिला है। अब वह किसान पूरे घर के कार्य छोड़ हर शनिवार मंदिर जाने लगा एक दिन बरसात में उसके गांव में बहुत तेज वारिस हुई उस दिन लोग अपने काम धंधे छोडकर घर से बाहर नही निकले लेकिन वह किसान शनि के प्रकोप के डर से अपने घर से निकला और बडी कठनाई से मंदिर पहुंचा। लेकिन उसका डर हमेशा चिंता बन कर उसे रातदिन खाता रहा एक दिन ऐसा आया कि काम धंधे पर ध्यान न दे पाने के कारण उसे अपने परिवार के भरण पोषण के लिये कर्ज लेकर जीवनयापन करना पड़ा इस तरह उसका कर्ज बढ़ता गया और चिंता चिता के समान उसे रातदिन जलाने लगी। लेकिन फिर भी वह उस चिंता ग्रस्त और किसी अनजान डर के कारण शनि मंदिर जाता रहा। एक दिन ऐसा आया कि उसे अपने गांव में ही जंगल में झोपड़ी बना कर अपने गांव में ही मजदूरी करना पड़ रही थी लेकिन अब वह एकदम चिंता मुक्त रहने लगा क्योकि उसके परिवार में उसकी कोई अहमियत नही बची क्योकि पत्नी और बच्चे अपने लिये स्वयं मजदूरी कर अपना भरण पोषण करने लगे। और वह भी सोचने लगा कि अब किस चीज के बर्बाद हो जाने के डर से मै जिऊं सब तो बर्बाद हो गया अब वह शनिमंदिर भी नही जाता था क्योकि वह शनिमंदिर को देख कर भय से ग्रस्त नही होता था केवल अपनी मूर्खता पर हंसता था कि जो होना था हो ही गया। इस देवता ने क्या कर लिया मुझे इतनी पूजा करने के बाद भी बर्बाद कर दिया। एक दिन वही ज्योतिषी दुबारा फिर उसी गांव में आये इस बार ये दूर से ही लोगों को उनसे मिलते हुये देखता रहा उसमें उस गांव का जमींदार भी था जो कि सुखी सम्पन्न था। और अगले दिन वही जमींदार उसे शनि मंदिर में दिखाई दिया वह किसान उसे देख कर मुस्कुरा दिया लेकिन उसने उस जमीदार को कुछ नही वताया क्योकि उसकी अंर्तात्मा ने उसे रोक दिया कि उसे एक दिन स्वयं ही सबकुछ पता पड़ जायेगा। किसान ने दूर से ही शनिमहाराज को हाथजोड़ कर धन्यवाद दिया कि आपने मेरी आंखो से भ्रम का पर्दा हटा दिया, मुझ स्वर्ण(सोने) की अशुद्धियाँ जीवन की विपत्तियों, ठोकर और कठिनाई रूपी अग्नि में भस्म कर दीं।
इस कहानी से और हमारे जीवन में अधिकतर लोगों को शनि देव के प्रभाव में लम्बें अंतराल तक कठिनाईयाँ,विपत्तियाँ और आर्थिक परेशानियाँ एक अच्छे सतगुणी जीवन को जीने की कला सिखाकर ही जाती हैं। ये सब भुगतने पर हमें अपने जीवन में ये पता पड़ जाता है कि कौन है जिसे हम पराया समझते थे वह अपनों से भी कहीं ज्यादा मददगार और जो अपने थे परायों से भी ज्यादा पराये निकले, कौन सा मित्र सच्चा है और कौन सा मित्र केवल अपना मतलब पूर्ण करने के लिये ही हमसे मित्रता रखता है। हमने अपने अहंकार के कारण बीते जीवन में कितने दुख लोगों को दिये और हमें भी उसी तरह उनकी हाय के रूप में अपने ही अहंकार के कारण वैसा ही दुख मिला। हमें पैसा बिना सोचे समझे,बिना अपने परिवार के विचार विमर्श के हर कहीं नही व्यय करना चाहिये, हमें उस विपत्ति के समय एक एक पैसा की अपने जीवन को जीने में अहमियत समझ आती है।
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