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गुरुवार, 9 फ़रवरी 2012

चिंता को रेग्यूलेट करें

हमारे जीवन में अनजाना भय हमें चिंता से ग्रसित करता है और जब चिंता एक लेवल से ज्यादा बढ़ जाती है तो वह हमें मरने से पहले ही चिता बन कर धीरे धीरे जलाने लगती है। भय की पत्नी चिंता है और चिंता की पुत्री उदासी, निराशा, हीनभावना और ये सभी मृत्यु के सगे संबंधी होते हैं जो हमें मृत्यु की ओर ले जाते हैं। हमें चिंता को चिता में परिवर्तित नही होने देना चाहिये बल्कि उसका चिंतन करना चाहिये। जब हमारे साथ कोई दुर्घटना हो जाती है तो हम पूरा 90 प्रतिशत समय ये सोचने में लगा देते हैं कि हमारे ही साथ ऐसा क्यो होता है और 10 प्रतिशत समय हम उस दुर्घटना से उत्पन्न समस्या के समाधान में लगाते हैं। यदि हम ये सोचे कि जो होना था सो होगया क्योकिं वह आपके हाथ में नही था और आपने जानबूझकर तो उस दुर्घटना को निमंत्रण नही दिया था।  और हम उस 90 प्रतिशत समय समस्या के समाधान में लगाये और समस्या क्यो उत्पन्न हुई के लिये 10 प्रतिशत चिंतन करें तो भय और चिंता हमें और हमारे मस्तिष्क पर तनाव नही उत्पन्न कर पायेेंगी। क्योकि हमने चिंता को रेग्यूलेट कर लिया जैसे सिलेंडर में भरी गैस को रेग्यूलेटर से रेग्यूलेट कर उस गैस से खाना पका लेते हैं। आपने सुना और पढ़ा होगा कि जब वह रेग्यूलेटर गैस को नियंत्रित नही कर पाता तो वही गैस आवश्यकता से अधिक मात्रा में निकल कर पूरे घर को जला देती है। बहुत से लोग पैसा खर्च कर बड़े बड़े मेडिटेशन कोर्स करते हैं फिर कोर्स समाप्त होने पर वापस अपने पुराने दिनचर्या पर आ जाते हैं। सत्संग सुनते है लेकिन असर केवल तब तक ही रहता है जब तक कि वे सत्संग में होतें हैं। हम हर बात में ये कहते हैं कि ये काम करने से क्या फायदा वो काम करने से क्या फायदा तो यही बात हम अपने शरीर के लिये सोचें तो हम चिंता से मुक्त होने में एक सफल प्रयास कर सकते हैं आज से यदि हम ये सोचे कि व्यर्थ ही आवश्यकता से अधिक चिंता से क्या फायदा तो हम अपनी सहायता स्वयं कर सकते हैं। हम सत्संग और मेडिटेशन गुरूओं के कहने पर आध्यात्मिक ज्ञान को अर्जित करते हैं लेकिन यदि आप ये कल्पना करें कि कोई आपके सामने प्यासा है और आप उसे पानी पर लिखा पूरा ग्रन्थ  सुना देते हैं या पूरा तरीका बता देतें हैं कि पानी कैसे जमीन से निकलेगा तो भी यदि वह प्यासा अपनी प्यास बुझाने के लिये वह तरीके ना अपनाये तो इसमें आप किसे दोषी पाएंगे। यदि आप पानी पर लिखा पूरा ग्रन्थ   ही निचोड़ दें तो भी एक बूंद पानी नही निकलेगा जो आपकी प्यास बुझा सके । इसलिये हमें अपने गुरू द्वारा बताया मार्ग अपनाकर विधि पूर्वक ध्यान और परमात्मा के नाम का जाप करना चाहिये तब ही हम अपनी समस्याओं से दूर रहकर शांति की खोज कर सकते हैं। जब हमारा दिमाग शांत होता तभी हमें अपनी समस्याएं के समाधान के लिये उपाय या ये कहें कि हर बार उस तरह की समस्या के  हल के लिये फार्मूला मिल जाता है।

फिल्मों में जब हम पागलों को पागलखाने में देखते हैं तो उनका पागलपन एक मात्रा से अधिक चिंता करने का परिणाम होता है चिंता उनके मस्तिष्क पर फतह कर ब्रेनवाश  कर देती है तब ये लोग चिंता और बुद्धिमानी से परे जीवन जीते हैं। बहुत से लोग चिंता को भूलाने के लिये नशा करते हैं क्योकि नशे में उन्हें चिंता कम होती नजर आती है वे मदहोश हो जाते हैं। लेकिन जब नशा उतरता है तो चिंता फिर वहीं की वहीं रहती है। हमें अपने जीवन से चिंता से डर से भागना नही है जागना है नही तो हम पूरी जिन्दगी इसी तरह चिंता के डर से भागते रहेंगे और ये चिंता हमारी चिता बन जायेगी। बहुत से लोग तो बिना कारण ही चिंता पाल लेते हैं जबकि उनके पास सुखी सम्पन्न रहने के लिये तमाम साधन मौजूद रहते हैं इस तरह के लोगों को अपने शहर का विकास और देश का विकास तो अच्छा लगता है लेकिन उनका कोई पड़ोसी या रिश्तेदार बिल्डिंग तान लेता है गाड़ी वगैरह खरीद लेता है तो वे ईर्ष्यायुक्त होकर चिंता के भंवर में फंस जाते हैं कि आखिर मेरा पड़ोसी ही तरक्की क्यो कर रहा है मेरी तरक्की क्यो नही हो रही। इस तरह की समस्याएं लोभ के कारण होती हैं यदि हम सतत संतुष्ट रह कर प्रगति के पथ पर अपने सामर्थ्य अनुसार बढ़ते चले तो हम संतुष्ट रह कर लोभ का शमन कर सकते हैं। अंत में मै यदि कहना चाहता हँू कि हमें अपने विकास की ओर अग्रसर होना है नाकि विनाश की ओर।


चीनी लोग ये मानते हैं कि जो बात आप दस हजार शब्दों में समझाना चाहते हैं यदि उसका चित्रण कर दिया जाये तो लोगों को ठीक से संदेश प्रेषित कर सकते हैं कि आपके कहने का तात्पर्य क्या है। इसी तरह जब आपको ये समझना हो कि ये चिंता आपको कैसी स्थिति तक ले जा सकती है तो एक बरगद के पेड़ का चित्र देखें जो दीमक के कारण सूख गया है और एक ऐसा चित्र भी देखें को हरा भरा है जो दीमक से दूर है। इस तरह के चित्र देखकर आप चिंता से उत्पन्न हानियों को समझ सकते हैं। अधिकतर चिंता इसलिये होती है क्योंकि हम दूसरों द्वारा थोपे गये निर्णय स्वीकार नही करना चाहते क्योंकि वे अन्याय पूर्ण होते हैं या जिससे हमारे आत्मविश्वास और आत्मसम्मान को ठेस पहँुचती है। कभी कभी हम निर्णय लेने के लिये दुविधा में पड़े होते हैं क्योंकि उससे हमें अपने दूरगामी नफे-नुकसान की चिंता पाल लेते हैं। कुछ कॉमन समस्याएँ और हल:
अधिकतर लोग घर से पैसा कमाने निकलते हैं लेकिन वे सेलरी का चैक तो महिने में केवल एक बार लाते हैं लेकिन आॅफिस की चिंता प्रतिदिन अपने गृहस्थी में ले आतें हैं और अपने परिवार के सदस्यों को भी पीड़ित करते हैं। आॅफिस की चिंता का जनक आपका वॉस या सीनियर अधिकारी होता है जिससे आप नही सभी कर्मचारी पीड़ित होते हैं लेकिन यदि हम धैर्य रखकर ये सोचकर कि ये भी समय भी गुजर जायेगा तो इस आॅफिस जनित चिंता को मात दे सकते हैं।
कुछ लोग पैसे के कारण दुखी होते हैं कि पैसा कम कमाते हैं खर्चे ज्यादा हैं लोन की ईएमआई चुकाना है इसका हल हम अपनी मॉल में माल खर्च करने की आदत को कम से भी कम या पूरी तरह खत्म कर हल कर सकते हैं जो व्यर्थ के खर्चे हमने पाल रखें हैं जैसे संडे के संडे मौज मस्ती, कपड़ों की शॉपिंग, फालतू गाड़ी बीना कार्य के न घुमाना पेट्रोल की खपत कम करना, बच्चों को जरूरत से ज्यादा विपापन में दिखाएं जाने वाले चाकलेट मिक्स पाउडर दूध में मिलाकर खिलाने की आदत, जंक फूड आदि, यदि आप बच्चों को विज्ञापनों के भ्रम जाल में न पड़कर सब्जी रोटी और अन्य सस्ते ड्रायफ्रूट , मौसमी फल भी दें तो भी बच्चों को स्वास्थ्य वर्धक खुराक मिल सकती है।
अपनी बचत को शेयर मार्केट में ना झोंके। बहुत से लोग अधिक कमाने के चक्कर में शेयर मार्केट में इन्वेस्ट करते हैं और बाद में हाथ मलते हैं। शेयर मार्केट में जब लोग ठोकर खाते हैं तो उन्हें स्वयं ही इस आदत से छुटकारा मिल जाता है एक ऐसी सीख मिल जाती है जिसे कोई ज्ञानी महात्मा समझाये तो भी समझ नही आता लेकिन जब ठोकर पड़ती है तो समझ आ जाता है।


चिंता के कारण लोग अपने काम में पूरा ध्यान नही दे पाते। काम कर रहें होते हैं लेकिन ध्यान कहीं ओर होता चिंता और समस्या की उधेड़बुन मस्तिष्क में चलती रहती है। इस तरह काम के प्रति चिढ़ भी पैदा होती जाती है किसी काम में मन नही लगता। आदमी चिढ़ चिढ़ा होता जाता है और हर बात पर आॅफिस में और घर पर क्रोध आने लगता है। इस तरह आर्थिक परेशानियाँ बढ़ती जाती हैं एक बात याद रखें कि जिस प्रकार नरसिंह अवतार ग्रहण करने पर भगवान विष्णु ने हिरण्य कश्यप का वध किया था उसके बाद भी उन्हें क्रोध में देख देवतागण समस्या के समाधान के लिये माता लक्ष्मी के पास गये और फिर माता लक्ष्मी ने जब भगवान का यह भयंकार क्रोध और आधा मानवव और शेर का रूप देखा तो वे भी डर गई और वहाँ से गायब हो गई। ये कहते हुये कि प्रभु आपका ये रूप मेरे लिये अति भयावह है मैने आपका यह रूप कभी नही देखा । इससे आशय यह है कि आदमी चाहे भगवान के समान ही बलशाली, विवेकी, ज्ञानी, विद्वान और सामर्थवान क्यो न हो यदि उनके घर में शांति नही है हर समय क्रोध के कारण कलह का महौल रहता हो। वहाँ लक्ष्मी निवास नही करती। चली जाती है। ये भी याद रखें कि ज्ञानी का पतन क्रोध से होता है।
हममे से अधिकतर लोगों की 90 प्रतिशत परेशानियाँ और तनाव का स्त्रोत या गढ़ होता है आॅफिस या नौकरी या जॉव। काम तो अपना करते हैं लेकिन तनाव उत्पन्न होता है अधिक काम के बोझ के कारण। सीनियर, टीम लीडर, मैनेजर जो हमें सेलरी मिल रही होती है उससे भी अधिक काम करवाने के या रिजल्ट के लिये आशांवित रहता है। यदि आप अपने सीनियर या मैनेजर से इसी कारण से परेशान हैं तो इस उदाहरण से अपनी समस्या के समाधान को खोजें - मान लिजिए आप बेक आॅफिस में कार्यरत हैं आपकी कार्य करने की स्पीड और काम के प्रति लगन है। आप टाइम से आते हैं और टाइम से जाते हैं भले ही बाकी संगी साथी गैर जिम्मदारी से आॅफिस आते जाते हों। लेकिन आप हमेशा अपने कार्य के प्रति समर्पित रहते हैं। जो सेलरी मिल रही है उसी से संतुष्ट रह कर अपने खर्च सीमित रख कर आप जीवन यापन कर रहे हैं, बढ़िया स्मूथ लाईफ चल रही होती है। टेंशन या चिंता या तनाव तब आता है जब आपका सीनियर या मैनेजर आप से कहता है कि ये फलां काम और कर देना पहली बार तो आप खुशी खुशी कर देते हैं दूसरी बार में आप कुछ अपने कार्यों का हवाला भी देते हैं लेकिन मैनेजर तो तय कर चुका होता है कि काम तो आपसे से ही करवाना है। तीसरी बार जब मैनेजर ये कहता है कि फलां कार्य आज से आप ही कर दिया करो तब आप मैनेजर से कहते हैं कि सर ये कार्य तो दूसरे कर्मचारी का आप मुझसे क्यो करवाते हैं तो मैनेजर कहता है कर दो यार वो कर नही पाता थोडी उसकी हेल्प हो जायेगी। लेकिन आपमें ये कहने का साहस नही होता कि यदि उसका कार्य मै कर रहा हँू तो कृपया उसकी आधी सेलरी मुझे प्रदान करने का कष्ट करें। क्योंकि यदि आप ऐसा कहते हैं तो आप की सोच के अनुसार आप नौकरी से निकाल दिये जायेंगे। यहाँ से होती है चिंता और तनाव की या ये कहें कि अच्छे खासे हरे भरे वृक्ष में दीमक लगने की शुरूआत।
इस स्थिति में लोग अपना गुस्सा घर के प्राणियों और पत्नि पर निकालते हैं घर में कलह शुरू हो जाती है। हम दूसरी नौकरी के लिये न्यूजपेपर में जॉव वेकेंसीज देखने लगते हैं लेकिन मन घबराता है कि यदि वहाँ भी ऐसा ही माहौल मिला तो बैंक की ईएमआई और परिवार का खर्चा कैसे चलेगा आदि। आपको उस मैनेजर के प्रति गुस्सा आता है आप अपनी किस्मत और परमात्मा को कोसते हैं कि मेरी किस्मत ही खराब है सीधा पेड़ की सबसे पहले काटा जाता है आदि। आप अपने सह कर्मियों और मित्रों को बताते हैं, तो कुछ कहते हैं कि मान ले यार मैनेजर की बात नही तो प्रमोशन या वेतनवृद्धि अटक जायेगी। पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर ठीक नही। भले ही आप कितनी भी सलहों से अपने मन या दिल और दिमाग को समझा लें ये चिंता और दूसरे के काम की जिम्मेदारी का बोझ का तनाव आपके दिमाग को गेहँू के घुन की तरह रात दिन खोखला करता जायेगा।
आइये इस समस्या का हल जिसे आप भी अपना सकत हैं जानते हैं- पहला तो ये कि आप अपने मन को ये समझाऐं कि इस समस्या का समाधान आप ढूंढ रहें हैं इस पर ज्यादा फोकस न करे। आप इस बात पर विश्वास करें कि आपकी समस्या का समाधान केवल और केवल आपके ही पास है आप ही उसे हल कर सकते हैं चाहे समस्या कितनी भी बड़ी हो। याद रखें की परमात्मा केवल उसकी सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं। पहले तो आप उस कार्य की समीक्षा करें कि जो कार्य आपको दिया गया है उसे करने में आपको कितना समय लगता है आप अपने कार्य करने के बाद ही उस कार्य को हाथ लगायें। भले ही उसे भेड़ चाल से करें। उस कार्य के लिये जिस के लिये मैनेजर आपको मजबूर कर रहा है देखें कि उसमें आपको कुछ सीखने को मिल रहा है या नही। याद रखें कि कोई भी नया कार्य करने से हमारी योग्यता और कार्यक्षमता बढ़ती है। ये याद करें कि भगवान जो करता है अच्छे के लिये ही करता है। जैसे हमें कोई छोटी मोटी चोट लगती है तो हम ये सोचते हैं कि जरूर भगवान ने मेरी बड़ी विपदा को मेरे पुण्यों के कारण छोटी विपदा में परिवर्तित कर दिया। एक चीज याद रखें कि जो व्यक्ति दबता है उसे लोग और दबाते हैं और जो रात दिन मार खाता है उसे लोग मार कर ही काम करवाते रहते हैं। जो अन्याय सहता है फिर उसे अन्याय सहने की आदत पड़ जाती है। आपने कभी फिल्मों या कहीं देखा होगा कि जानवर भी एक हद तक मार खाता है उसके बाद यदि वह पलट के वार करता है या हिंसक हो जाता है तो लोग भाग खड़े होते हैं। हाथी की भी एक खासियत होती है कि वह एक लम्बे समय तक अपने मस्तिष्क में उस आदमी की छवि याद रखता है जिसने उसे कोई हानि पहँुचाई हो। यदि वह व्यक्ति भविष्य में उसे मिल जाता है तो वह अपना बदला ले लेता है। वैसे तो हाथी शांत रहता है। लेकिन जब वह मस्त या क्रोध में आ जाता है तो आपने देखा सुना होगा कि वह कितना खुंखार हो जाता है। लेकिन हमें अपने अंदर अपने एनिमल बे्रन (animal brain) को इस तरह एक्टिव नही होने देना कि आप उस मैनेजर के प्रति दुर्भावना या कोई बैर पाल बैठें। हमे इस समस्या को ये सोचकर कि हम भगवान की मर्जी से होता है उसकी मर्जी के बिना तो पत्ता भी नही हिलता। आप उस समय को याद किजिए कि जब आप ट्रेन यात्रा कर रहे होते है और ट्रेन में बहुत भीड़ एकदम से सवार हो जाती है भले ही आपने रिजर्वेशन कराया हो लोग आपकी सीट पर किसी तरह जगह बनाने में कामयाब हो जाते हैं। यहाँ तक हो ठीक है लेकिन कुछ लोग अपने व्यवहार के कारण हमारी यात्रा को दुखद और तनाव युक्त कर देते हैं लेकिन हमें एडजेस्ट करना होता है क्योकि यहाँ हम ना तो बैर पाल सकते हैं और यदि झगड़ा भी किया तो कोई फायदा नही। इस समस्या को हम ये सोचकर सह लेते हैं कि हमारा स्टेशन आने ही वाला है या उस व्यक्ति का स्टेशन आने वाला है और समस्या खत्म। ध्यान दीजिये हमें इसी तरह अपने आॅफिस जनित समस्याओं का हल इसी तरह करना है । क्योकि कोई भी किसी आॅफिस में परमानेंट नही होता यदि होता भी है तो एक ना एक दिन जरूर हम अच्छा अवसर आने पर उससे निजात पा लेंगे। इस तरह आप थोड़ा अपना दिमाग लगा कर उस एक्स्ट्रा कार्य को कर दीजिये ताकि उसे बोलने का मौका न मिले। और जब भी वह मैनेजर आप को और एक्स्ट्रा वर्क दे तो आप हंसते हंसते करें जरूर, भले ही आधे अधूरे मन से करें आप उस मैनेजर को अब एक पहेली लगने लगेंगे वह आप से अपने आपको तुच्छ महसूस करेगा। और आप उस समय को सोचिये जब आप इस तुच्छ प्राणी के कारण अपना जीवन नर्क बना कर रातदिन तनाव पाल रहे थे स्वयं भी पीड़ित थे अपनों को भी प्रताड़ित कर रहें थे उस तनाव में आपने अपना कितना खून जला दिया जिस कार्य को करने में कुछ घंटे खर्च होना थे। याद रखिये कि जो रूक जाता है उसकी प्रगति भी रूक जाती है हमें हमेशा किसी भी परिस्थिति में प्रगति के पथ पर अग्रसर होना है अच्छी जिन्दगी जीना है अपना लक्ष्य पाना है। जैसे नदी अपने आप को किसी भी तरह पत्थरों से या बड़े बड़े बांध बना कर बांधे जाने पर अपना प्रवाह  निरंतर जारी रखती है।
भगवान की भक्ति या स्मरण आप यदि ये सोचकर कर रहें कि भगवान आपकी समस्याओं को खत्म कर देंगें या जो होगा अच्छा ही होगा। तो आप ये ध्यान रखें कि भगवान केवल आपको अक्ल देगा , जो होगा अच्छा ही होगा लेकिन करना आपको ही पड़ेगा भगवान केवल आपको मौका देगें। मन की शांति या बिना तनाव का मन ज्यादा देर नही रहता मन में हर सेंकड में अनेकों विचार आते हैं। आपने देखा होगा कि जब शांत जल में एक बारीक से बारीक कंकड़ भी फेंका जाता है तो लहरें बन जाती हैं और उस पानी में हमारा प्रतिबिम्ब की गायब हो जाता है इसी तरह जब हमारा मन हमेशा शांत रहता है, हमारा दिमाग शांत रहता है तभी हम किसी समस्या को अपनी शक्तियों को पहचान कर हल कर सकते हैं। भले ही मनुष्य धनबल, बाहुबल, आदि के द्वारा सुखी हो लेकिन शांति परमात्मा की कृपा से ही मिलती है। किसी के  पास सुखी जीवन के कीमती साधन जैसे महल जैसा घर, सोने के बर्तन, मखमल और बड़ा सोने का पलंग ही क्यो न हो यदि उसके  पास क्रमश: स्वस्थ शरीर, भूख और आँखों में नीद न हो तो ये सब किस काम के। आप यदि सुखी हैं तो भी यदि आपने पास शांति नही है तो परमात्मा की कृपा से ये पाई जा सकती है।

  हमारे जीवन में अनेकों क्षण ऐसे आते हैं कि हमें एक लम्बे समय तक ऐसे वातावरण या लोगों से व्यवहार रखना पड़ता जिन्हें हम पसंद नही करते तथा जिनके लिये हमारे मस्तिष्क में पूर्वाग्रह रहता है। कुछ लोग ऐसे माहौल में रहते हैं जहाँ शिक्षित और शांति पसंद लोग नही रहते बल्कि उस कस्बे में रात दिन लड़ाई झगड़ा चलता रहता है। लोग परिवर्तन को भूल कर एक ऐसी जिन्दगी जी रहे होते हैं जो दूर से देखने पर सभ्य नजर नही आती। हममें से बहुत से लोग इसी माहौल में पले बढ़े होते हैं, हम जहाँ भी कार्य करते हैं या बिजनेस करते हैं वहाँ के लोग हमारे बात करने और पहनावे से समझ जाते हैं कि हम उस घटिया कस्बे से हैं मुँह पर कोई नही बोलता लेकिन लोग ऐसे लोगो से व्यवहार रखने में सावधानी रखते हैं और हम एक हीनभावना से से त्रस्त हो जाते है यही हीन भावना एक समय बाद हमें हमें प्रगति के पथ पर एक सीमा के बाद नही बढ़ने देती। यही वह समय होता है जब हमें शांति पूर्वक ये विचार करना होता है कि हमें उस असभ्य कस्बे को छोड़कर सभ्य लोगों की दुनिया में परिवार सहित रहना सही रहेगा। भले ही वहाँ का माहौल हमें सूट नही करे लेकिन हम दीर्घकालिक दृष्टिकोण से देखें तो ये हमारे परिवार और हमारे बच्चों के लिये एक अच्छे भविष्य की शुरूआत होगी। मै ये नही कर रहा हूँ कि हम देश छोड़कर विदेशों में भागें मै उस शहर की बात कर रहा हूँ जहां हम निवास करते हैं और जिस शहर में आम शब्द प्रचलित रहता है जैसे पुराना शहर और नया शहर । एक ही शहर में हमें लोगों के रहन सहन और बोलचाल में जमींन आसमान सा फर्क नजर आता है।
जैसे हम बचपन से ही कुछ सब्जियों से नफरत करते हैं या कुछ सब्जियाँ जब हमारे घर में बनती हैं तो हम उस दिन खाना नही खाते, नाक भौ सिकोड़ते हैं क्योंकि हमें वह सब्जी पसंद नही है। हम अपनी आधी जिन्दगी तक ये सब्जियाँ जैसे भटे, लौकी, टिंडे, कद्दू आदि नही खाते क्योंकि बचपन से ही हम पूर्वाग्रह पाल लेते है कि ये सब्जी बेकार है इसमें स्वाद नही हैं ये हमें भाती नही है आदि। लेकिन जब हम बड़े हो जाते हैं शादी हो जाती है, बच्चे हो जाते हैं तब हम अपने अच्छे स्वास्थ्य के लिये न्यूज पेपर और मेगजीन में पढ़ते हैं कि फलाँ सब्जी में ये विटामीन होते हैं वो विटामिन होते हैं तब हम जागते हंै और हमें पता पड़ता है कि जिन सब्जियों को हम बचपन से नफरत भरी निगाहों से देखतें आ रहें हैं वे हमारे लिये बहुत स्वास्थ्यवर्धक साबित होगी। तब हम पूरे जतन से उन सब्जियों को घर पर लाकर बना कर स्वादपूर्वक खाते हैं। अपने बच्चों को भी खाने के लिये कहते हैं। इस तरह हम अपने जीवन में जागृत हो जातें हैं। इसी तरह बदली परिस्थितियों से तारतम्य बैठाने के लिये हमें अपने मन को प्रशिक्षित करना होगा हमें अपने डरते हुये मन को इस बात के लिये जागृत करना होगा कि स्थिति बदलेंगें तो हमारी इस दुनिया में परिस्थियाँ बदल जायेंगी हमें थोड़ा रिस्क या जोखिम लेना ही पड़ेगा जैसे महान वैज्ञानिकों ने रिस्क लिया और उन्होंने मनुष्यों के भले के लिये बड़े बड़े ऐतिहासिक पुल, वायुयान, चंद्रयान, कम्प्यूटर, मोबाइल आदि बनाये। यदि हम प्यास से रेगिस्तान में भटक रहें हैं तो हमें इस बात के लिये जागृत होना पड़ेगा कि रेगिस्तान में पानी मिलना बड़ा समय बर्बाद करने वाला काम है हमें किसी गांव को ओर रूख करना चाहिये ताकि हमें पानी और अन्य खाद्य सामग्री मिले हम अपना मनुष्य जीवन सफलता पूर्वक जी सकें। हमें अपनी गलत संगतियाँ छोड़कर अपने कीमती समय को कीमती ज्ञान के लिये अच्छे लोगों की संगति करना होगी, जिनसे हमें लगातार अपने जीवन को जानने और समझने का मौका मिले। हमें आज से ही बुरे लोगों की संगति और आदतें त्यागनी होंगीं जो कि हमारे जीवन को नर्क बनाने पर तुली होती हैं, जिनके कारण हम लगातार तनाव में रहते हैं, हमारा आत्मविश्वास और हमारी इमेज जहाँ डाउन होती रहती है। हमारे आस पास एक प्राणी होता है जिसे गंदगी में रहने में बड़ा आनंद आता है जिसके लिये कचड़े का ढ़ेर या घूड़ा ही स्वर्ग होता है जिसके साथ यदि आप रहते हैं तो आपको गंदगी ही नसीब होगी, इस तरह की संगति हमें छोड़नी होगी नही तो हमारी दुर्गति हो जायेगी। यदि आप से सोचते हैं कि आपके बिना ये दुनिया नही चलेगी या आपके बिना फलां कम्पनी में काम नही होगा तो ये गलत है हमें अपनी बुद्धि विवेक का उपयोग कर सोचना होगा कि दुनिया कभी नही रूकती बड़े बड़े बादशाह, राजा, नेता आदि कालकलवित हो गयें लेकिन आज भी दुनिया चल रही हैं जबकि बहुत से लोग सोचते थे कि वे दुनिया चला रहें हैं। ये आपने तब अनुभव किया होगा जब आप किसी बीमारी या चोट के कारण 10 से 15 दिनों तक वेड रेस्ट पर रहते हैं तब भी दुनिया या आपकी कम्पनी का काम आपके बिना चल रहा होता है। हमारा मन और मस्तिष्क जब कोई नई और कोई अच्छी चीज सीखता है जिससे कि हमारे परिवार और हमारी तरक्की हो तो पूरा का पूरा तनाव हम भूल जाते हैं। इसलिये हमें इसी दुनिया में रहते हुये लगातार अपनी परिस्थितियाँ सुधारते रहना होगा। हमें अपनी परिस्थियाँ एकदम से नही चेंज करनी है उसके लिये धीरे धीरे विवेकपूर्ण तरीके से अग्रसर होना है जैसे बीज में एक   वृक्ष छुपा होता है लेकिन जब वह बीज मिट्टी में बोया जाता है तब यह तय होता है कि वह कितने समय में वृक्ष बनेगा। ये निर्भर करता है वहां कि उपजाऊ मिट्टी, धूप और पानी पर । हमें अपने संसाधन धीरे धीरे बढ़ाने होंगे। तब ही हम सपने साकार कर सकने की दिशा में एक अलग जिन्दगी की नई शुरूआत कर सकते हैं। इसे इस तरीके से भी समझ सकते हैं कि जब हम किसी अंधेरे रास्ते पर चल रहें होतें हैं तब हमारी टॉर्च या गाड़ी की हेड लाईट केवल कुछ फीट तक ही हमें रोशनी के साथ मार्गदर्शन कराती है ना कि पूरे कई किलोमीटर तक के रास्ते का एक बार में और हम लगातार बढ़ते रहते हैं। इसी तरह हमें अपने जीवन में थोड़ी थोड़ी तरक्की करते हुये आनंद मनाते हुये आगे बढ़ना है। जैसे एक धावक या रनर दस किलोमीटर की दौड़ में पहले नौ किलोमीटर धीरे धीरे दौड़ कर धैर्य रखकर, अपनी एनर्जी बचाकर दौड़ता है लेकिन जब वह दसवां किलोमीटर तय कर रहा होता है तब वह पूरे जोश और एनर्जी के साथ दौड़ता है। ध्यान रखें कि हमें ऐसे लोगों और भ्रम वाली चीजों से बचना है जो हमारी तरक्की का दावा करते हैं वो भी तूफान की गति से। हमें रिस्क लेना है लेकिन ऐसा रिस्क नही कि कोई कहें कि एक लाख रूपये महीने मिलेंगे और जब आप ज्वाइन कर लें तब आपको पता पड़े की ट्रेन के आगे लालटेन लेकर दौड़ना है, रात में श्मशान में सोना है, पागलों के बीच रहना है आदि।
हमारा मन लोभ के कारण हमें भटकाता है हमें सदैव अपनी अंर्तात्मा की सुन कर निर्णय लेना चाहिये ताकि सुखद परिणाम हों। जैसे हम कौए की कांउ कांउ को सुन कर उसे अनसुना करते हैं और कोयल की कुक में हमें रस आता है हम उस कोयल को भी देखने लगते हैं वैसे ही हमें अपने कौए रूपी मन को और अंर्तात्मा रूपी कोयल की बात सुनना है। अधिक पैसा कमाने और लोभ के कारण हमें अपने शरीर रूपी रथ को क्षतिग्रस्त नही करना है जिस पर आत्मा अपना मनुष्य जीवन तय करेगी। हमें इतना पैसा कमाने के लोभ में नही पड़ना है जिसकी हमें चौकीदारी करना पड़े और हमारी नींद हमें नींद की गोलियों के सहारे बुलाना पड़े। हमे धन लक्ष्मी के साथ भोग लक्ष्मी को भी आमंत्रित करना होगा ताकि हम जो पैसा कमा रहें हैं उसे भोगने के लिये हम शारीरिक और मानसिक तौर पर पूर्णत: स्वस्थ रहें। ऐसा न हो कि हम कमाते ही रहें और बैंक एकाउंट की चौकीदारी में ही पूरी जिन्दगी निकल जाये हम अपने लक्ष्य को भूल जायें। और अलादीन के चिराग रूपी बैंक में हमने जो पैसा रूपी जिन्न कैद किया है उसे कोई पराया अपनी इच्छाओं की पूर्ति में लगा दे। इसका मतलब ये न समझे कि हम अपने बच्चों और परिवार के वित्तीय भविष्य के बारें में गैर जिम्मेदारी को अपना बैठें। हमें चासनी का मजा बर्तन के किनारे पर बैठ कर लेना है ना कि चासनी में डूबकर मरना है जैसे मक्खी अपने पंख चिपक जाने पर नही उड़ पाती है वह चासनी उसकी मृत्यु का कारण बन जाती है। मधुमक्खी की तरह मेहनत और परिश्रम से अपने और बच्चों के भविष्य के लिये मधु रूपी पैसा कमाना है। लेकिन मधुमक्खी की तरह उसे चुराने वाले को काट कर अपना अहित नही करना है जैसे मधुमक्खी छतते को तोड़ने वाले को काट लेने पर मर जाती है।

1 टिप्पणी:

  1. sach thokar khakar jo gyan milta hai wah n to koi mahatma nahi de sakta hai....
    bahut achhi sakaratmak post padhne ko mili, bahut achha laga... aap bhopal se hain yah jaankar bhi khushi huyee...
    haardik shubhkamnayen!

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